मौजूदा समय में हर लड़ाई जंग के मैदान में बंदूकों और तोपों से ही नहीं जीती जा सकती. जी नहीं, यहां हम अर्थव्यवस्था (Economy) वाली लड़ाई की बात नहीं कर रहे बल्कि विश्व की कूटनीति वाली रणनीति (Diplomatic Strategy) की बात यहां अहम है. भौगोलिक राजनीति के तहत भारत जिस तरह एशिया के छोटे और अपने पड़ोसी देशों के साथ रिश्ते मज़बूत कर रहा है, रणनीति यही है कि चीन के खिलाफ उसके मिशन में उसे इन देशों का समर्थन और साथ मौके पर हर तरह से मिल सके. विदेश मंत्री जयशंकर (S. Jaishankar) से लेकर विदेश सचिव हर्षवर्धन श्रिंगला (Harsh Vardhan Shringla) और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजीत डोवाल (Ajit Doval) करीबी देशों के दौरे करते हुए लगातार भारत की इस स्ट्रैटजी को शिद्दत से अंजाम देने में जुटे हुए हैं.
हाल में,आपको बताया था कि कैसे मालदीव को भारत ने चीन से छीनकर अपने पाले में करने की कवायद को अंजाम दिया. लेकिन, सिर्फ मालदीव ही नहीं बल्कि 'सबका साथ, सबका विश्वास' वाली रणनीति और भी पड़ोसी देशों के साथ अपनाई जा रही है. आर्थिक ही नहीं, बल्कि रक्षा समझौतों के तहत चीन के खिलाफ एक मज़बूत आधार तैयार किया जा रहा है. आइए आपको बताते हैं कि किस तरह भारत अपनी इस रणनीति को किन देशों में कारगर बनाने में जुटा हुआ है.
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नेपाल के साथ रिश्ते सुधारने की कवायद
कोविड 19 के दौर में लद्दाख बॉर्डर पर चीन के साथ तनाव की स्थिति बनी, तो दूसरी तरफ, दोहरा संकट इसलिए पैदा हो गया था क्योंकि लिम्प्याधुरा कालापानी और लिपुलेख क्षेत्रों को अपने नक्शे में दिखाकर नेपाल ने एक तरह से भारत के खिलाफ जाने की नीति ज़ाहिर कर दी थी. चीन के साथ बॉर्डर तनाव बढ़ने के बाद से पहली बार भारत के किसी वरिष्ठ अधिकारी के तौर पर श्रिंगला ने हाल में नेपाल का दौरा किया.
इस दौरे में मकसद के हिसाब से नेपाल को कोरोना से निपटने के लिए दवाइयां और वैक्सीन के रूप में मदद करने का वादा भारत ने किया. इसके साथ ही, चीन के बेल्ड एंड रोड इनिशिएटिव के जवाब में भारत ने नेपाल में अपने इन्फ्रास्ट्रक्चर संबंधी प्रोजेक्टों को और बढ़ाने और निवेश का भरोसा भी नेपाल को दिया.
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'इंडिया फर्स्ट' रणनीति की कोशिश
इस साल दो बार डोवाल श्रीलंका दौरे पहुंचे, तो श्रीलंका ने हाल में कहा कि 'उसकी विदेश नीति तटस्थता वाली ही रहेगी, लेकिन बेशक रणनीति और रक्षा मामलों में 'इंडिया फर्स्ट' की अप्रोच ज़रूर अपनाई जाएगी. अस्ल में, अब माना जाता रहा है कि श्रीलंका के रिश्ते चीन के साथ भारत से बेहतर रहे हैं. लेकिन, अब भारत सरकार इस समीकरण को पलटने की कोशिश कर रही है.
क्या है भारत का सागर मिशन?
पिछले दिनों ही विदेश मंत्री एस जयशंकर ने एक और छोटे से द्वीप सेशेल्स में 9 करोड़ डॉलर से ज़्यादा के इन्फ्रास्ट्रक्चर प्रोजेक्टों को पूरा करने का ऐलान किया. साथ ही, सुरक्षा सहयोग को लेकर भी अहम रज़ामंदी कायम की. अस्ल में, भारत हिंद महासागर में ची��� के प्रभाव को कम करने के मकसद से छोटे लेकिन महत्वपूर्ण द्वीप देशों के बीच पैठ बना रहा है. श्रींलका, मालदीव, सेशेल्स के साथ ही मॉरिशस को भारत निवेश के साथ ही कोविड 19 के खिलाफ लड़ाई में मदद देकर भी दोस्ती का हाथ बढ़ा रहा है और रक्षा के मोर्चे पर भी इन देशों को दोस्त बना रहा है.
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मिशन सागर (Mission Sagar) का अर्थ वास्तव में 'Security And Growth for All The Region' है, जो महासागर के प्रमुख देशों के साथ सकारात्मक रिश्ते बनाने का विज़न है. यह भी गौरतलब है कि इन देशों के बीच भारतीय नौसेना का दबदबा बरकरार है.
लेकिन, रणनीति और भी देशों तक है
जहां तक बात चीन के खिलाफ एक नेटवर्क तैयार करने की है, तो बात सिर्फ महासागर के द्वीप देशों तक सीमित नहीं है. बांग्लादेश और अफगानिस्तान जैसे देश भी इस रणनीति के दायरे में है. बांग्लोदश के लिए चीन के लुभावने प्रस्तावों के बाद श्रिंगला ने पिछले दिनों बांग्लादेश का दौरा किया और एनआरसी व नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पड़ोसी देश की गलतफहमी दूर करने की कवायद की.
दूसरी तरफ, अफगानिस्तान में भारत ने इसी हफ्ते काबुल नदी पर शहतूत डैम के निर्माण का ऐलान किया था. इस कदम के पीछे रणनीति चीन की गोद में बैठे जानी दुश्मन पाकिस्तान पर दबाव बनाना समझी जा रही है. यह भी ध्यान रखना चाहिए कि क्वाड देशों की हालिया बैठक के बाद जापान, अमेरिका और ऑस्ट्रेलिया के साथ मिलकर भारत ने चीन के विस्तारवाद से निपटने के लिए अहम बातचीत भी की थी.
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आखिर में आपको यह भी जानना चाहिए कि चीन के विस्तारवादी रवैये से परेशान वियतनाम में भी भारत ने हाल में सैन्य सहयोग का आधार और मज़बूत किया है. न केवल नौसेना संबंधी सहयोग बल्कि भारत अब वियतनाम को आधुनिक हथियार और ट्रेनिंग भी देगा. कई समाचार एजेंसियों से आ रहीं इन तमाम खबरों के बाद हालात साफ कह रहे हैं कि चीन को घेरने के लिए और एशिया, खासकर दक्षिण एशिया व हिंद महासागर में चीन के प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए भारत कमर कस चुका है.