शताब्दियों से चांद अपने रहस्य के बारे में बताने से दृढ़ता से इनकार करता आया है। प्राचीन यूनानी और रोमन सभ्यता में चांद को सफेद और चिकना माना जाता था, लेकिन उसकी सतह पर व्याप्त गंदे धब्बों की, उनके पास कोई सुविचारित व्याख्या नहीं थी। 90 ईस्वी में प्लूटार्क ने लिखा कि वे धब्बे दरअसल पहाड़ों और घाटियों की छायाएं हैं और चांद अवश्य ही मनुष्य के बसने के अनुकूल होगा। चांद के बारे में इन जानकारियों से सभी लोग सहमत नहीं थे, लेकिन कभी-कभी अज्ञानता भी वरदान बन जाती है। अपने सवालों के तसल्लीबख्श जवाब न पाकर मानव जाति चांद के बारे में कुछ सिद्धांत, अनुमान, मिथक और कपोल कल्पनाएं ले आईं। टेलीस्कोप के जरिये चांद को और स्पष्टता से देख पाना संभव हो गया, और भले ही किसी प्राणी के वहां होने के बारे में पता नहीं चला, लेकिन यह धारणा बन गई कि वहां रहने वाला नहीं मरेगा। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद जो अफवाहें फैलीं, उनमें से एक यह भी थी कि जर्मनों ने चांद पर अपने हित में कुछ गोपनीय सुविधाएं शुरू की हैं, जबकि कुछ ने तो यहां तक अफवाह फैली दी कि हिटलर ने अपनी मृत्यु के बारे में झूठी खबर फैला दी है, जबकि वह चांद की सतह पर गोपनीय ढंग से रह रहे हैं।
न्यूयॉर्क स्थित मेट्रोपॉलिटन म्यूजियम ऑफ आर्ट में अपोलो'स म्यूज : द मुन इन द एज ऑफ फोटोग्राफी नाम से एक प्रदर्शनी शुरू हुई है, जो पिछली चार शताब्दियों के चांद के इतिहास के बारे में बताती है। इस प्रदर्शनी में चांद से जुड़ी उत्तरोत्तर खगोलविज्ञानीय खोजें, जो सामान्य आकार से काफी बड़े तीन सौ चित्रों, इससे संबंधित कुछ वस्तुएं (एक टेलीस्कोप, एक पुरानी तस्वीर, दो मून ग्लोब और खगोलवैज्ञानिकों द्वारा इस्तेमाल किए गए हासेलब्लैड कैमरे) और कुछ फिल्मों के चुनींदा अंश जैसे विज्ञान और कला के सम्मोहित करने वाले समागम जैसे मालूम होते हैं।
ये चित्र खगोलवैज्ञानिकों की ज्ञान की अनथक खोज के साथ-साथ तकनीकी प्रगति तथा चांद के बारे में कलाकारों की धारणाओं तथा कल्पनाओं के बारे में बताते हैं। यह प्रदर्शनी जानने और खोज करने की मानवीय इच्छा के बारे में तो बताती ही है, यह टेलीस्कोप की खोज के समय से लेकर पचास साल पहले चांद पर पड़े मनुष्य के पहले चरण तक चांद के चित्र खींचने की लगातार बढ़ती प्रवृत्ति के बारे में भी बताती है।
मेट के डिपार्टमेंट ऑफ फोटोग्राफी के क्यूरेटर मिया फिनेमैन ने बाल्टीमोर काउंटी स्थित मैरीलैंड यूनिवर्सिटी के एलबिन ओ कन लाइब्रेरी ऐंड गैलरी के क्यूरेटर और स्पेशल कलेक्शन्स हेड बेथ सौंडर्स के साथ मिलकर इस प्रदर्शनी का आयोजन किया। यही नहीं, इन दोनों ने इस प्रदर्शनी के इनफॉरमेटिव कैटलॉग के लिए लेख भी लिखे।
वर्ष 1608 में टेलीस्कोप के आविष्कार के बाद लगने लगा था कि चांद के रहस्यों के बारे में पता चल जाएगा। वर्ष 1609 में गैलीलियो ने चांद के पोर्टेट बनाए, जो उसके बारे में सबसे आधिकारिक ढंग से बताते थे। अंग्रेज गणितज्ञ और खगोलविज्ञानी थॉमस हैरिओट ने टेलीस्कोप से चांद के चित्र खींचकर उसके बारे में अपने विचार गैलीलियो से पहले बता दिए थे, लेकिन उनके ये विचार बहुत बाद में प्रकाशित हुए और चांद पर के 'विचित्र धब्बों' के बारे में कुछ नहीं कहा गया था। गैलीलियो को महसूस हुआ कि ये धब्बे वस्तुतः पहाड़ों की छाया हैं। इस प्रदर्शनी में गैलीलियो के दो प्रकाशित चित्र शामिल किए गए हैं।
17 वीं शताब्दी में टेलीस्कोप के विकास के साथ मनुष्य ज्यादा दूर की और छोटी चीजें देखने में सक्षम हुआ। जोनेस हेवेलियस ने 1647 में सेलेनोग्राफी नाम से एक मून एटलस प्रकाशित किया-यूनानी मिथक कथाओं में सेलेना चांद की देवी का नाम है। इसे चांद पर केंद्रित पहली किताब कहा जाता है।
खगोलवैज्ञानिकों ने चांद को जैसा देखा, वैसा उसका चित्र बनाया। कलाकारों ने उन चित्रों को और बेहतर किया। फ्रेंच कलाकार क्लोदे मैलन ने 1635 में चांद के जो रेखाचित्र बनाए, वे केवल सुंदर ही नहीं थे, वे इतने सटीक और सुघड़ थे कि अगली दो शताब्दियों तक कोई कलाकार उससे बेहतर रेखाचित्र नहीं बना पाया।
20 वीं सदी के मध्य तक चांद प्यार करने की चीज हो गया था। पोट्रेट स्टूडियोज ने मुस्कराती अर्द्धचंद्राकार आकृतियों को मशहूर कर दिया था। जब नासा ने अपना चंद्र अभियान शुरू किया, तब तक चांद गंभीर बहस का विषय बन गया था। नासा के मानवरहित चंद्र अभियान ने चांद की नजदीक से तस्वीरें लीं और लैंडिंग साइट का भी पता लगाया। लेकिन नील आर्मस्ट्रांग ने उन्हें दिए गए निर्देश के विपरीत अलग लैंडिंग साइट चुनी। शुरुआत में आलोचकों ने अपोलो अभियान को झूठ कहा। लेकिन अमेरिकियों ने दुखांत, उथल-पुथल और शीतयुद्ध के एक दशक के बाद इसे राष्ट्र को गौरवान्वित करने वाले अवसर के रूप में देखा।
1969 में चांद पर अमेरिकी ध्वज फहराया गया, तो इसलिए नहीं कि चांद पर अमेरिकी उपग्रह स्थापित कर हमने उसे अमेरिकी कॉलोनी बना लिया, बल्कि इसलिए कि हम चांद से जुड़ी अपनी उपलब्धि को यादगार बनाना चाहते थे।