उत्पादन के मामले में इजरायली आम दुनियाभर में पहले स्थान पर है। ऐसा क्यों है इसे समझने के लिए नासिक के जनार्दन वाघेरे ने अपने 10 एकड़ खेत में एक प्रयोग किया। उन्होंने यह प्रयोग केसर आमों पर किया। जनार्दन के मुताबिक, इजरायल की तकनीक से लगाए गए पौधों में प्रति एकड़ 3 टन आम की पैदावार हुई। दैनिक भास्कर ऐप से बातचीत में जर्नादन वाघेरे ने बताया क्या है इजरायली तकनीक और भारत में आम की पैदावार इतनी कम क्यों है-
जनार्दन वाघेरे किसान होने के साथ नासिक में मैंगो फार्म के मालिक भी हैं। उन्होंने बताया, इजरायल में आम की खेती के दौरान 6X12 का नियम लागू किया जाता है। यानी हर 6 फीट की दूरी पर एक पेड़ लगाया जाता है और एक से दूसरी कतार की दूरी 12 फीट होती है। उन्होंने यह दूरी कम करके 3X14 का नियम लागू किया। फसल में रसायनों का इस्तेमाल न्यूनतम किया। नतीजा यह रहा है कि प्रति एकड़ 3 टन आम की पैदावार हुई। अब यही तकनीक जनार्दन महाराष्ट्र और गुजरात के किसानों को सिखा रहे हैं।
जर्नादन ने बताया, भारत में आम के उत्पादन में 30X30 का नियम लागू किया जाता है। पौधों के बीच दूरी अधिक होने के कारण बड़ी जगह पर भी कम पौधे लगाए जाते हैं। इसलिए हम उत्पादन में इजरायल से पीछे हैं। इजरायल में आमों के रिकॉर्ड उत्पादन का श्रेय मैंगो प्रोजेक्ट को भी जाता है जिसे यहां की सरकार चला रही है। खेती से लेकर ब्रांडिंग तक की जिम्मेदारी मैंगो प्रोजेक्ट का ही हिस्सा है। इजरायल में सालभर में 50 हजार टन आमों का उत्पादन होता जिसमें से 20 हजार टन दुनियाभर के कई देशों निर्यात किए जाते हैं। इनकी पांच किस्म ऐसी भी है जिसका पेटेंट और दूसरे देशों में नहीं उगाया नहीं जा सकता।
इजरायल में आम की पैदावार 1920 में शुरू हुई थी। इसे बेहतर बनाने और नई प्रजातियों को विकसित करने के लिए 'मैंगो प्रोजेक्ट' की शुरुआत हुई। सालों की रिसर्च के बाद देश ने अपनी आम की किस्में विकसित कीं। ये ऐसी प्रजाति थीं जो अधिक गर्म तापमान में भी बढ़ने में समर्थ थीं। माया, सबसे पहली इजरायली आम की प्रजाति है। इसके अलावा शैली, ओमर, नोआ, टाली, ऑर्ली और टैंगो भी यहां विकसित की गईं। इजरायल के पास आमों की 8 प्रजातियों का पेटेंट है, जिसे कहीं और नहीं उगाया जा सकता।
खेती: जून से दिसंबर तक होती है कटाई
इजरायल में 90 फीसदी आमों की पैदावार गिलबोआ और 10 फीसदी सेंट्रल अरावा व जॉर्डन वैली में होती है। यहां आमों की काफी वैरायटी हैं और इनकी खासियत के मुताबिक कटाई का समय भी अलग-अलग होता है। 15 जून से लेकर दिसंबर तक आमों की कटाई की जाती है। जून से अगस्त के बीच अरावा में पैदा होने वाली हादेन, टॉमी और माया प्रजाति तोड़ ली जाती है। अगस्त में शेली, नोआ, ओमर और सितंबर में केंट की कटाई की जाती है।
इजरायल में हर साल 50 हजार टन आमों का उत्पादन किया जाता है। इसमें से 20 हजार टन आम को यूरोप, फ्रांस, नीदरलैंड, गाजा, वेस्ट बैंक और रशिया जैसे देशों में निर्यात किया जाता है। 30 हजार टन स्थानीय बाजारों में बिक्री के लिए भेजा जाता है। यहां हर साल 100-150 हेक्टेयर नए हिस्से में पौधरोपण किया जाता है ताकि धीरे-धीरे आमों की पैदावार को बढ़ाया जा सके। औसतन एक हेक्टेयर में यहां 30-40 टन आम की पैदावर होती ���ै जबकि दूसरे देशों में 10 टन प्रति हेक्टेयर ही पैदावार हो पाती है।
ग्लोबल मार्केट में यहां के आमों का खास रुतबा है। यूरोपियन मार्केट में 20 फीसदी इजरायली आमों का हिस्सा है। आम के मामले में इजरायल के सबसे बड़ी प्रतिद्वंद्वी देश पश्चिम अफ्रीका, ब्राजील और मैक्सिको हैं। खास किस्म के कारण साल दर साल यहां के आमों की मांग में इजाफा हो रहा है। दुनिया में बढ़ती मांग के कारण यहां नई प्रजाति को उगाने के लिए रिसर्च की जा रही है।
देश | उत्पादन (टन में) |
इजरायल | 50,000 |
भारत | 15,026 |
चीन | 4,351 |
थाईलैंड | 2,550 |
पाकिस्तान | 1,845 |