- जेसिका लाल हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे मनु शर्मा को अच्छे चाल-चलन के आधार पर रिहा कर दिया गया
- अब इसकी चर्चा गर्म कि आखिर उम्रकैद की सजा के दौरान कब मुजरिम की रिहाई हो सकती है और क्या कानूनी प्रावधान
- कानूनन उम्रकैद का मतलब उम्रकैद होता है, लेकिन 14 साल जेल काटने के बाद सरकार चाहे तो सजा में छूट दे सकती है
नई दिल्ली
जेसिका लाल हत्याकांड में उम्रकैद की सजा काट रहे मनु शर्मा को अच्छे चाल-चलन के आधार पर रिहा कर दिया गया। इसके बाद इसकी चर्चा गर्म हो गई कि आखिर उम्रकैद की सजा के दौरान कब किसी मुजरिम को रिहा किया जा सकता है और क्या कानूनी प्रावधान है:
एडवोकेट नवीन शर्मा बताते हैं कि उम्रकैद का मतलब उम्रकैद होता है, लेकिन 14 साल जेल काटने के बाद सरकार चाहे तो सजा में छूट दे सकती है। इसको लेकर सीआरपीसी में व्यवस्था है और सुप्रीम कोर्ट ने भी इसे स्पष्ट किया है।
राजीव गांधी के हत्यारों की अर्जी पर SC ने दी थी व्यवस्था
सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा था कि उम्रकैद की सजा का मतलब उम्रकैद है, लेकिन सरकार अगर चाहे तो सजा में छूट दे सकती है लेकिन वह सजा में छूट खुद से नहीं दे सकती। बल्कि मुजरिम की ओर से सजा में छूट के लिए याचिका दायर करने के बाद ही सजा में छूट दी जा सकती है। पांच जजों की बेंच ने बहुमत से यह फैसला दिया था। राजीव गांधी के हत्यारों की रिहाई के खिलाफ केंद्र सरकार की अर्जी पर सुप्रीम कोर्ट ने यह व्यवस्था दी थी।
कोई भी मुजरिम सजा में छूट के लिए दे सकता है अर्जी
सीनियर एडवोकेट केके मनन के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट के तत्कालीन चीफ जस्टिस एचएल दत्तू की अगुवाई वाली संवैधानिक बेंच के सामने कई सवाल आए थे। जिन्हें सुप्रीम कोर्ट ने 2 दिसंबर 2015 को दिए अपने फैसले में स्पष्ट किया था।
सवाल था कि उम्रकैद का मतलब क्या है? क्या उम्रकैद का मतलब उम्रकैद से है और मुजरिमों के पास सजा में छूट पाने का अधिकार है या नहीं? इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि उम्रकैद का मतलब बाकी की जिंदगी जेल में। लेकिन सजा में छूट आदि के लिए आवेदन देने का मुजरिम का अधिकार है और उसमें कोई दखल नहीं हो सकता।
राष्ट्रपति से अर्जी खारिज होने के बाद भी सरकार छूट दे सकती है?
सुप्रीम कोर्ट के सामने यह भी सवाल था कि संविधान के अनुच्छेद-72 और 161 के तहत राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास से अर्जी खारिज होने के बाद भी क्या राज्य सरकार सीआरपीसी की धारा-432 और 433 के तहत अपने अधिकार का इस्तेमाल कर सजा में छूट दे सकती है?
कानूनी जानकार मुरारी तिवारी बताते हैं कि इस सवाल पर सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सरकार को अधिकार है कि वह अपने शक्ति का इस्तेमाल करे, इसमें कोर्ट का दखल नहीं होगा। साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि जो मामला सेंट्रल एजेंसी ने छानबीन की हो और केंद्र के जूरिडिक्शन का मामला है, उसमें केंद्र सरकार की वरीयता होगी। साथ ही जहां राज्य का मामला है वहां राज्य सरकार का अधिकार होगा।
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14 साल जेल काटने के बाद ही मिल सकती है छूट
एडवोकेट करण सिंह बताते हैं कि धारा-432 के तहत राज्य सरकार मुजरिम को सजा में छूट दे सकती है। और 433 के तहत प्रावधान है कि सजा में बदलाव कर सकती है। 1978 में सीआरपीसी की धारा में बदलाव करते हुए 433 ए जोड़ा गया और कहा गया कि सरकार उम्रकैद की सजा को 14 साल से कम नहीं कर सकती।
1978 में मेरू राम बनाम यूनियन ऑफ इंडिया के केस में सुप्रीम कोर्ट के कंस्टिट्यूशनल बेंच ने कहा कि सीआरपीसी का बदलाव कानूनसंगत है। जेल मैन्युअल के मुताबिक, उम्रकैद की सजा पाया मुजरिम जब 14 साल कैद काट लेता है तो जेल प्रशासन उसके कंडक्ट के आधार पर उसके केस को सजा रिव्यू कमिटी के पास भ���जती है और अगर कमिटी यह समझती है कि मुजरिम की सजा कम की जा सकती है तो वह अपनी सिफारिश राज्यपाल के पास भेजती है और फिर बाकी की सजा माफ होती है।