पुरी के विश्वप्रसिद्ध जगन्नाथ मंदिर के चमत्कारों से सभी सुपरिचित हैं। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि इस मंदिर पर कई बड़े हमले हुए हैं। हर हमले के बाद मंदिर और मंदिर के चमत्कारों पर कोई असर नहीं हुआ है।
मंदिर से जुड़े इतिहास का अध्ययन करने वालों का दावा है कि हमलों की वजह से 144 वर्षों तक भगवान जगन्नाथ को मंदिर से दूर रहना पड़ा, आइए जानते हैं 17 प्रमुख हमले...
पहला हमला :
जगन्नाथ मंदिर को नष्ट करने के लिए पहला हमला वर्ष 1340 में बंगाल के सुल्तान इलियास शाह ने किया था, उस वक्त ओडिशा, उत्कल प्रदेश के नाम से प्रसिद्ध था। उत्कल साम्राज्य के नरेश नरसिंह देव तृतीय ने सुल्तान इलियास शाह से युद्ध किया। बंगाल के सुल्तान इलियास शाह के सैनिकों ने मंदिर परिसर में बहुत खून बहाया और निर्दोष लोगों को मारा, लेकिन राजा नरसिंह देव, जगन्नाथ की मूर्तियों को बचाने में सफल रहे, क्योंकि उनके आदेश पर मूर्तियों को छुपा दिया गया था।
दूसरा हमला
वर्ष 1360 में दिल्ली के सुल्तान फिरोज शाह तुगलक ने जगन्नाथ मंदिर पर दूसरा हमला किया।
तीसरा हमला
मंदिर पर तीसरा हमला वर्ष 1509 में बंगाल के सुल्तान अलाउद्दीन हुसैन शाह के कमांडर इस्माइल गाजी ने किया। उस वक्त ओडिशा पर सूर्यवंशी प्रताप रुद्रदेव का राज था। हमले की खबर मिलते ही पुजारियों ने मूर्तियों को मंदिर से दूर, बंगाल की खाड़ी में मौजूद चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया था। प्रताप रुद्रदेव ने बंगाल के सुल्तान की सेनाओं को हुगली में हरा दिया और भागने पर मजबूर कर दिया।
चौथा हमला
वर्ष 1568 में जगन्नाथ मंदिर पर सबसे बड़ा हमला किया गया। ये हमला काला पहाड़ नाम के एक अफगान हमलावर ने किया था। हमले से पहले ही एक बार फिर मूर्तियों को चिल्का लेक नामक द्वीप में छुपा दिया गया था। लेकिन फिर भी हमलावरों ने मंदिर की कुछ मूर्तियों को जलाकर नष्ट कर दिया था। इस हमले में जगन्नाथ मंदिर की वास्तुकला को काफी नुकसान पहुंचा। ये साल ओडिशा के इतिहास में निर्णायक रहा। इस साल के युद्ध के
बाद ओडिशा सीधे इस्लामिक शासन के तहत आ गया।
पांचवां हमला
इसके बाद वर्ष 1592 में जगन्नाथ मंदिर पर पांचवा हमला हुआ। ये हमला ओडिशा के सुल्तान ईशा के बेटे उस्मान और कुथू खान के बेटे सुलेमान ने किया। लोगों को बेरहमी से मारा गया, मूर्तियों को अपवित्र किया गया और मंदिर की संपदा को लूट लिया गया।
छठा हमला
वर्ष 1601 में बंगाल के नवाब इस्लाम खान के कमांडर मिर्जा खुर्रम ने जगन्नाथ पर छठवां हमला किया. मंदिर के पुजारियों ने मूर्तियों को भार्गवी नदी के रास्ते नाव के द्वारा पुरी के पास एक गांव कपिलेश्वर में छुपा दिया। मूर्तियों को बचाने के लिए उसे दूसरी जगहों पर भी शिफ्ट किया गया।
सातवां हमला
जगन्नाथ मंदिर पर सातवां हमला ओडिशा के सूबेदार हाशिम खान ने किया लेकिन हमले से पहले मूर्तियों को खुर्दा के गोपाल मंदिर में छुपा दिया गया।
ये जगह मंदिर से करीब 50 किलोमीटर दूर है। इस हमले में भी मंदिर को काफी नुकसान पहुंचा। वर्ष 1608 में जगन्नाथ मंदिर में दोबारा मूर्तियों को वापस लाया गया।
आठवां हमला
मंदिर पर आठवां हमला हाशिम खान की सेना में काम करने वाले एक हिंदू जागीरदार ने किया। उस वक्त मंदिर में मूर्तियां मौजूद नहीं थी। मंदिर का धन लूट लिया गया और उसे एक किले में बदल दिया गया।
नौंवा हमला
मंदिर पर नौवां हमला वर्ष 1611 में मुगल बादशाह अकबर के नवरत्नों में शामिल राजा टोडरमल के बेटे राजा कल्याणमल ने किया था। इस बार भी पुजारियों ने मूर्तियों को बंगाल की खाड़ी में मौजूद एक द्वीप में छुपा दिया था।
दसवां हमला
10वां हमला भी कल्याणमल ने किया था, इस हमले में मंदिर को बुरी तरह लूटा गया था।
11वां हमला
मंदिर पर 11वां हमला वर्ष 1617 में दिल्ली के बादशाह जहांगीर के सेनापति मुकर्रम खान ने किया। उस वक्त मंदिर की मूर्तियों को गोबापदार नामक जगह पर छुपा दिया गया था।
12वां हमला
मंदिर पर 12वां हमला वर्ष 1621 में ओडिशा के मुगल गवर्नर मिर्जा अहमद बेग ने किया। मुगल बादशाह शाहजहां ने एक बार ओडिशा का दौरा किया था तब भी पुजारियों ने मूर्तियों को छुपा दिया था।
13वां हमला
वर्ष 1641 में मंदिर पर 13वां हमला किया गया। ये हमला ओडिशा के मुगल गवर्नर मिर्जा मक्की ने किया।
14वां हमला
मंदिर पर 14वां हमला भी मिर्जा मक्की ने ही किया था।
15वां हमला
मंदिर पर 15वां हमला अमीर फतेह खान ने किया। उसने मंदिर के रत्नभंडार में मौजूद हीरे, मोती और सोने को लूट लिया।
16वां हमला
मंदिर पर 16वां हमला मुगलत बादशाह औरंगजेब के आदेश पर वर्ष 1692 में हुआ। औरंगजेब ने मंदिर को पूरी तरह ध्वस्त करने का आदेश दिया था, तब ओडिशा का नवाब इकराम खान था, जो मुगलों के अधीन था। इकराम खान ने जगन्नाथ मंदिर पर हमला कर भगवान का सोने के मुकुट लूट लिया। उस वक्त जगन्नाथ मंदिर की मुर्तियों को श्रीमंदिर नामक एक जगह के बिमला मंदिर में छुपाया गया था।
17वां हमला
मंदिर पर 17वां और आखिरी हमला, वर्ष 1699 में मुहम्मद तकी खान ने किया था, तकी खान, वर्ष 1727 से 1734 के बीच ओडिशा का नायब सूबेदार था। इस बार भी मूर्तियों को छुपाया गया और लगातार दूसरी जगहों पर शिफ्ट किया गया. कुछ समय के लिए मूर्तियों को हैदराबाद में भी रखा गया।