हिन्दू धर्म दुनिया का प्रथम और सबसे प्राचीन धर्म है। इस धर्म का एक मात्र ग्रंथ है वेद। वेदों के सार को ही उपनिषद कहते हैं। इसे ही वेदातं कहा गया है। हिन्दू धर्म में ब्रह्म को ही सत्य माना गया है जो संपूर्ण जगत में व्याप्त होकर भी जगत से अलग है। सभी आत्माएं उस ब्रह्म का अंश ही है। हिन्दू धर्म की सैकड़ों बाते हैं जिसे दुनिया पसंद करती है, लेकिन हम यहां बताएं मात्र 10 खासियत।
1.उत्सवप्रियता-
हिन्दू धर्म में प्रत्येक त्योहार या पर्व सेहत, उत्सव, रिश्तों और प्रकृति से जुड़े हैं। हिन्दू धर्म मानता है कि ईश्वर ने मनुष्य को ही खुलकर हंसने, उत्सव मनाने, मनोरंजन करने और खेलने की योग्यता दी है। यही कारण है कि सभी हिन्दू त्योहारों और संस्कारों में संयमित और संस्कारबद्ध रहकर नृत्य, संगीत और पकवानों का अच्छे से सामंजस्य बैठाते हुए समावेश किया गया है। उत्सव से जीवन में सकारात्मकता, मिलनसारिता और अनुभवों का विस्तार होता है। यही उत्सवप्रियता दुनिया को पसंद है तभी तो ब्रज की होली और कुंभ को देखने के लिए दुनियाभर से लोग भारत आते हैं।
2.सांस्कृतिक एकता-
भारत के प्रत्येक समाज या प्रांत के अलग-अलग त्योहार, उत्सव, पर्व, परंपरा और रीति-रिवाज हो चले हैं, लेकिन गहराई से देखने पर इन सभी त्योहार, उत्सव, पर्व या परंपरा में समानता है अर्थात एक ही पर्व को मनाने के भिन्न-भिन्न तरीके हैं। भारत की कई भाषाओं को बोलने के कई अंदाज होते हैं लेकिन सभी का मूल संस्कृत और तमिल ही है। उसी तरह भारत के सभी समाज एवं जातियों का मूल भी एक ही है। उनके वंशज भी एक ही हैं। मतलब यह कि पंथों में अलगाव होने के बावजूद संघर्ष नहीं हैं। अलग-अलग मान्यताओं का एक ही परिवार में वास है और सभी हंसी-खुशी रहते हैं। यह बात विदेशियों के लिए हैरान करने वाली है।
3.धार्मिक शिक्षा का पर नहीं-
हिन्दू धर्म एक कट्टरपंथी धर्म नहीं है। किसी भी प्रकार का कोई सामाजिक दबाव नहीं है। धार्मिक शिक्षा के लिए कोई जोर-जबरदस्ती नहीं है। हिन्दू धर्म मानता है कि शिक्षा सभी तरह की होना चाहिए। सिर्फ धार्मिक आधार पर शिक्षा नहीं होना चाहिए। हां, शिक्षा संस्कार वाली होगी तो ही कोई बच्चा बड़ा होकर एक अच्छा इंसान बनेगा।
4.तीर्थ और मंदिर-
हिन्दू धर्म के सभी तीर्थ और प्रमुख मंदिर को हर कोई देखना चाहेगा। हर धर्म से जुड़ा व्यक्ति वहां जाकर खुद में खुशी महसूस कर सकता है। क्योंकि वहां आपको घंटियों की मधुर आवाज के साथ ही एक ऐसा आध्यात्मिक वातावरण मिलता है जिसके सानिध्य में रहकर आप खुद को प्रसंन्न और शांत कर सकते हैं। हिन्दू तीर्थ स्थलों में विदेशी सैलानी ऐसे ही नहीं घूमते हैं।
5.सह-अस्तित्व और स्वीकार्यता-
परोपकार, सहिष्णुता, उदारता, मानवता और लचीलेपन की भावना से ही सह-अस्तित्व और सभी को स्वीकारने की भा��ना का विकास होता है। सह-अस्तित्व का अर्थ है सभी के साथ समभाव और प्रेम से रहना चाहे वह किसी भी जाति, धर्म और देश से संबंध रखता हो। इतिहास में ऐसे कई उदाहरण हैं कि हिन्दुओं ने दुनिया के कई देशों से समय-समय पर सताए और भगाए गए शरणार्थियों के समूह को अपने यहां शरण दी। दूसरी ओर हिन्दू जहां भी गया वह वहां की संस्कृति में घुल-मिल गया।