हाइलाइट्स:
- एक नए शोध में पता चला है कि हमारी आकाश गंगा मरे हुए एलियंस का घर हो सकती है
- साथ ही ���स बात की संभावना जताई गई है कि ये एलियंस अपने ही तकनीक के शिकार हो गए
- यह शोध ऐसे समय पर आया है जब शोधकर्ताओं ने स्मार्ट जीवों के अस्तित्व की गणना की
वॉशिंगटन
अनंत आकाश में एलियंस के मौजूदगी की अटकलें अक्सर लगती रहती हैं लेकिन अब एक नए शोध में पता चला है कि हमारी आकाश गंगा मरे हुए एलियंस का घर हो सकती है। साथ ही इस बात की पुरजोर संभावना जताई गई है कि ये एलियंस अपने ही विज्ञान और तकनीक के शिकार हो गए और मारे गए। यह शोध ऐसे समय पर आया है जब शोधकर्ताओं ने स्मार्ट जीवों के अस्तित्व की गणना की।
शोधकर्ताओं ने पाया कि हमारी आकाश गंगा के गठन के करीब 8 अरब साल बाद एलियंस पैदा हुए थे। चूंकि अभी तक इंसान एलियंस से संपर्क करने में असफल रहे हैं, शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन में कहा कि विज्ञान और तकनीक के विकास का परिणाम निस्संदेह सभ्यताओं का विनाश रहा। इस शोध में कहा गया है कि विज्ञान और तकनीक का विकास हमें विनाश और पतन की ओर ले जाता है।
DDC चुनाव: जम्मू-कश्मीर में कांग्रेस, बुखारी और निर्दलीयों ने गुपकार गठबंधन से कैसे छीना 8 का जादुई आंकड़ा?
इंसान का आत्मविनाश काफी हद तक संभव
इससे पहले आए अन्य शोधों में भी कहा गया है कि इंसान का आत्मविनाश विभिन्न परिस्थितियों में काफी हद तक संभव है। शोधकर्ताओं ने कहा कि स्मार्ट प्राणी खुद को खत्म कर सकते हैं, यह आश्चर्यजनक नहीं है कि कहीं पर स्मार्ट जीवन है ही नहीं या कुछ मात्रा में है। शोधकर्ताओं ने पाया कि अगर ब्रह्मांड में कहीं एलियन हैं तो भी वे या तो इतने युवा हैं अभी कि हमें उन्हें देख नहीं पा रहे हैं या वे बहुत दूर हैं।'
हाल ही में वैज्ञानिकों के अंतरराष्ट्रीय दल ने पहली बार हमारे सौरमंडल के बाहर स्थित ग्रह से आ रहे रेडियो संकेतों का पता लगाया है। यह संकेत 51 प्रकाशवर्ष दूर स्थित ग्रह प्रणाली से आ रहे हैं। वैज्ञानिकों ने बताया कि नीदरलैंड स्थित रेडियो दूरबीन ने Low-Frequency Array (LOFAR) का इस्तेमाल कर Tau Bootes तारे की प्रणाली से आ रहे रेडियो संकेतों का पता लागया है। इसके बहुत करीब गैस से बना ग्रह चक्कर लगा रहा है और जिसे कथित ‘गर्म बृहस्पति’ के नाम से भी जाना जाता है।
घर लौटे विराट कोहली पर सुनील गावसकर का बड़ा हमला, बोले- अश्विन और नटराजन 'अलग नियम' के शिकार
जापान ने अंतरिक्ष में 30 करोड़ किलोमीटर दूर से मंगाया 'काला सोना', तस्वीरें कर रही हैरान
जापानी विशेषज्ञों ने कहा कि ऐस्टरॉइड Ryugu से आए ये नमूने मोटाई में 0.4 इंच के हैं और चट्टान की तरह से कठोर हैं। इससे पहले जापानी विशेषज्ञों ने हयाबूसा 2 यान से आए एक और नमूने की तस्वीर जारी की थी। इसमें छोटे, काले और रेत की तरह से कण दिखाई पड़े थे। अंतरिक्ष यान ने फरवरी 2019 में इस नमूने को दूसरी जगह से अलग से इकट्ठा किया था। जापानी यान ने दूसरी बार ऐस्टरॉइड के सतह पर से नमूनों को इकट्ठा किया। इस नमूने को यान के दूसरे हिस्से में पाया गया है। जापानी यान दूसरी बार जुलाई 2019 में ऐस्टरॉइड पर उतरा था। इस दौरान यान ने एक इंपैक्टर को ऐस्टरॉइड की सतह पर गिराया था जिसने उसकी सतह पर विस्फोट किया। इससे ऐस्टरॉइड के वे नमूने ऊपर आ गए जो स्पेस रेडिएशन से प्रभावित नहीं थे।
जापानी प्रफेसर उसूई ने बताया कि ऐस्टरॉइड से आए नमूनों के दोनों सेट Ryugu की सतह पर मिट्टी के नीचे स्थित चट्टान की अलग-अलग कठोरता को दिखाते हैं। उन्होंने कहा कि एक संभावना यह भी है कि दूसरी बार यान ऐसी जगह पर उतरा जहां पर सतह के नीचे कठोर चट्टान थी। उन्होंने कहा कि इसी वजह से ऐस्टरॉइड के बड़े-बड़े टुकड़े मिले और यान के अंदर आ गए। पहली बार ऐस्टरॉइड पर उतरने के बाद जो नमूने मिले थे, वे छोटे, काले और रेत की तरह से थे। रियगु एक जापानी नाम है जिसका मतलब 'ड्रैगन का महल' होता है। रियगु एक ऐसा ऐस्टरॉइड है जो पृथ्वी के बेहद करीब है। यह आकार में करीब 1 किलोमीटर का है। धरती से रियगु की दूरी करीब 30 करोड़ किलोमीटर है। इन अनमोल नमूनों के अब साइंस ऑब्जर्वेशन ऑपरेशन किए जाएंगे और धरती और चांद को साइंटिफिक इंस्ट्रुमेंट्स की मदद से ऑब्जर्व किया जाएगा।
इराक में अमेरिकी दूतावास पर रॉकेट हमला, डोनाल्ड ट्रंप ने ईरान को दी सैन्य कार्रवाई की धमकी
जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी का Hayabusa 2 मिशन दिसंबर 2014 में लॉन्च किया गया था। यह 2018 में Ryugu पर पहुंचा और 2019 में सैंपल इकट्ठा किए गए जिनमें से कुछ सतह के नीचे थे। Hayabusa 2 कैप्सूल पहली बार किसी ऐस्टरॉइड के अंदरूनी हिस्से से चट्टानी सैंपल लेने वाला मिशन बना है। ऐसा दूसरी बार है कि किसी ऐस्टरॉइड से अनछुए मटीरियल को धरती पर वापस लाया गया है। इसे ऑस्ट्रेलिया में सफल लैंडिंग के बाद खोज लिया गया। इस सफलता के बाद जापानी यान अब एक और ऐस्टरॉइड की यात्रा पर निकल गया है जो करीब 11 साल में पूरी होगी। इस ऐस्टरॉइड का नाम है '1998KY26'। इस यात्रा का मकसद यह जानना है कि अगर कोई चट्टान अंतरिक्ष से धरती की ओर आती है तो उससे कैसे अपना बचाव करना है।
जापानी वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि इन सैंपल्स की मदद से ऐस्टरॉइड के जन्म और धरती पर जीवन की उत्पत्ति से जुड़े जवाब मिल सकेंगे। जापान एयरोस्पेस एक्सप्लोरेशन एजेंसी के वैज्ञानिकों का मानना है कि सैंपल, खासकर ऐस्टरॉइड की सतह से लिए गए सैंपल में मूल्यवान डेटा मिल सकता है। यहां स्पेस रेडिएशन और दूसरे फैक्टर्स का असर नहीं होता है। माकोटो योशिकावा के प्रॉजेक्ट मैनेजर ने बताया है कि वैज्ञानिकों को Ryugu की मिट्टी में ऑर्गैनिक मटीरियल का अनैलेसिस करना है। जापान इन नमूनों की जांच करने के बाद उसे NASA और अन्य अंतरराष्ट्रीय स्पेस एजेंसी को इन नमूनों को देगा ताकि उसकी अतिरिक्त जांच की जा सके।
महिला को सपने में दिखे भगवान शिव, कहा-मैं इस जगह दबा हूं, मुझे बाहर निकालो
पहली बार रेडियो संकेत से खोज
जर्नल ‘ऐस्ट्रोनॉमी ऐंड एस्ट्रोफिजिक्स’ में प्रकाशित रिसर्च पेपर में बताया गया कि केवल Tau Bootes ग्रह प्रणाली से ही निकल रहे रेडियो संकेत का पता चला है जो शायद ग्रह के विशेष चुंबकीय क्षेत्र की वजह से निकल रहे हैं। वहीं, कॉर्नेल यूनिवर्सिटी में पोस्टडॉक्टोरल रिसर्चर जेक डी टर्नर ने कहा, 'रेडियो संकेत के जरिये हमने पहली बार सौर मंडल के बाहर ग्रह का पहला संकेत पेश किया है।' उन्होंने कहा, 'ये संकेत Tau Bootes प्रणाली से आ रहे हैं जिसमें दो तारे और ग्रह है। हमने ग्रह ��े संकेत आने का मामला पेश किया है।'