मास्को
रूस ने अपने परमाणु नीति में बड़ा संशोधन करते हुए ऐलान किया है कि अगर उसके ऊपर किसी भी बैलिस्टिक मिसाइल से हमला होता है तो वह पलटवार में परमाणु बम दाग सकता है। रूसी रक्षा मंत्रालय ने गुरुवार को परमाणु हमला करने की शर्तों में हुए संशोधन की जानकारी देते हुए कहा कि किसी भी हमलावर मिसाइल को परमाणु लैस मिसाइल के रूप में माना जाएगा।
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शीर्ष नेतृत्व करेगा परमाणु हमले का फैसला
रूसी रक्षा मंत्रालय के अखबार रेड स्टार ने टॉप मिलिट्री साइंटिस्ट अलेक्जेंडर खारापिन और रूस के जनरल स्टाफ सदस्य एंड्री स्टर्लिन के हवाले से लिखा कि किसी भी ऑटोमेटिक मिसाइल से हुए हमले की सूरत में देश के शीर्ष नेतृत्व को मामले की पूरी जानकारी दी जाएगी। जो उस समय की परिस्थिति के हिसाब से न्यूक्लियर फोर्स के प्रतिक्रिया के पैमाने का निर्धारण करेगा।
तो इसलिए रूस ने लिया यह बड़ा फैसला
इन्होंने बताया कि रूसी मिसाइल हमले को डिटेक्ट करने वाली चेतावनी प्रणाली यह निर्धारित नहीं कर सकती है कि लॉन्च की गई मिसाइल परमाणु हथियारों से लैस है या नहीं। ऐसे में सबसे खराब स्थिति को सोचकर परमाणु हमला करने का फैसला लिया जा सकता है। क्योंकि अगर वह परमाणु मिसाइल हुई तो हम प्रतिक्रिया देने में चूक सकते हैं।
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अमेरिका और रूस में फिर शुरू होगी हथियारों की रेस
अमेरिका और रूस के बीच परमाणु हथियारों को कम करने की समझौता (New START) 5 फरवरी 2021 को खत्म होने वाला है। अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने इस समझौते की तारीख को आगे बढ़ाने से इनकार कर दिया है। उनका कहना है कि यह समझौता रूस के पक्ष में है। यह संधि रणनीतिक परमाणु वारहेड्स की संख्या को सीमित करती है और दोनों देशों को एक दूसरे की निगरानी करने की अनुमति देती है। ऐसे में इस समझौते के खत्म होने से दोनों देशों के बीच फिर से हथियारों की रेस शुरू हो सकती है।
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ओपन स्काइज संधि से भी बाहर हो रहा अमेरिका
अमेरिका और रूस ओपन स्काइज संधि को भी खत्म कर रहे हैं। ट्रंप ने इसके लिए रूस को जिम्मेदार ठहराया है। इस संधि के तहत 30 से अधिक देशों को एक-दूसरे के क्षेत्र में हथियारों के बिना निगरानी उड़ानों की अनुमति है। दशकों पहले यह व्यवस्था परस्पर विश्वास बढ़ाने और संघर्ष को टालने के लिए शुरू की गई थी। अमेरिका का कहना है कि वह इस संधि से बाहर होना चाहता है क्योंकि रूस समझौते का उल्लंघन कर रहा है।
1955 में दिया गया था प्रस्ताव
इस संधि के लिए पहली बार जुलाई 1955 में प्रस्ताव तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति डी आइजनहावर ने दिया था। इसके प्रस्ताव के मुताबिक अमेरिका और तत्कालीन सोवियत संघ को एक-दूसरे के क्षेत्र में हवाई टोही उड़ानों की अनुमति देने की बात कही गई थी। हालांकि, मॉस्को ने पहले उस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था लेकिन राष्ट्रपति जॉर्ज एच डब्ल्यू बुश ने मई 1989 में फिर से यह प्रस्ताव किया और जनवरी 2002 में यह संधि लागू हो गई।
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पारदर्शिता को बढ़ावा देना उद्देश्य
अभी 34 देशों ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं। किर्गिस्तान ने इस पर हस्ताक्षर किए हैं लेकिन उसने अभी तक इसकी अभी पुष्टि नहीं की है। इस संधि के तहत 1,500 से अधिक उड़ानों का संचालन किया गया है जिसका उद्देश्य सैन्य गतिविधि के बारे में पारदर्शिता को बढ़ावा देना और हथियारों के नियंत्रण और अन्य समझौतों की निगरानी करना है। संधि में सभी देश अपने सभी क्षेत्रों को निगरानी उड़ानों के लिए उपलब्ध कराने पर सहमत हैं, फिर भी रूस ने कुछ क्षेत्रों में उड़ानों पर प्रतिबंध लगा दिया है।