- चीन ने पूर्वी लद्दाख में आक्रामक रवैया दिखाकर सबसे ज्यादा नुकसान खुद का किया है
- प्रफेसर सी राजा मोहन के मुताबिक, लद्दाख की घटना चीन के बदले रवैये की एक कड़ी है
- उन्होंने कहा कि तीन दशकों में जो विश्वास बहाली का माहौल बना, उस पर चीन ने पानी फेर दिया
नई दिल्ली
पूर्वी लद्दाख में चीन के दुस्साहस ने ऐसा माहौल तैयार कर दिया है जिसमें भारत को उसके साथ संबंधों में 'मौलिक बदलाव' की दरकार पड़ गई है। सामरिक मामलों के विशेषज्ञ प्रफेसर सी राजा मोहन ने कहा कि चीन ने अपनी ताकत का धौंस दिखाकर भारत की जमीन हड़पने का जो अस्वीकार्य प्रयास किया, उससे करीब तीन दशकों में आपसी विश्वास बहाली की कोशिशों को जबर्दस्त ठेस पहुंची है।
चीन ने भारत को आंकने में गलती कर दी!
प्रफेसर मोहन ने पूर्वी लद्दाख, दक्षिणी चीन सागर और पूर्वी चीन सागर में चीन के आक्रामक रुख का हवाला देते कहा कि चीन गलत जगहों पर आक्रामकता दिखाकर परिणाम भुगतने को बाध्य हो चुका है क्योंकि उसकी हरकतों से प्रभावित देशों में उसके खिलाफ राष्ट्रवाद की लहर जोर पकड़ सकती है। इस कारण क्षेत्र में शक्ति संतुलन की कवायद में तेजी दिख सकती है। उन्होंने सिंगापुर से टेलिफोन पर दिए इंटरव्यू में कहा, 'मेरी नजर में महत्वपूर्ण बात यह है कि चीनियों ने एशिया में राष्ट्रवाद की प्रकृति का मौलिक रूप से गलत आकलन कर लिया। एशिया में ज्यादातर देश राष्ट्रवादी स्वभाव के हैं, भारत भी राष्ट्रवादी है। दक्षिण पूर्व एशिया में राष्ट्रवाद की बहुत गहरी भावना है।'
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एशिया में इसलिए नहीं चल पाएगी चीन की दादागीरी
प्रफेसर राजा मोहन अभी सिंगापुर के केंद्रीय विश्वविद्यालय में दक्षिण एशिया अध्ययन संस्थान में निदेशक हैं। उन्होंने कहा, 'एक देश की इच्छा को थोपने के प्रयास की कड़ी प्रतिक्रिया होगी जैसा कि चीन समेत ज्यादातर एशियाई देशों ने औपनेविशक ताकतों के खिलाफ संघर्ष किया था। इसलिए कोई भी देश एशिया में किसी नई ताकत के दबदबा कायम करने के प्रयासों को आसानी से स्वीकार नहीं करने वाला।'
खुद के पांव पर कुल्हाड़ी मार रहा चीन
उन्होंने कहा कि चीन अपनी हकरतों से एशियाई देशों को अमेरिका की तरफ धकेल रहा है। राजा मोहन ने कहा कि दुनिया के अन्य देश भी बीजिंग के खिलाफ प्रतिरोध जता रहे हैं क्योंकि वैश्विक समुदाय किसी भी एक ताकत का दबदबा यूं ही स्वीकार नहीं कर सकता। उन्होंने कहा, 'चीन ने ज्यादातर देशों को अमेरिका के पाले में कर दिया है, उन देशों को भी जो अमेरिका से डील करने में संकोच कर रहे थे। चीन अपने कई पड़ोसी देशों को अमेरिका के साथ रक्षा और सुरक्षा सहयोग समेत विभिन्न क्षेत्रों में मजबूत गठबं���न करने पर मजबूर कर रहा है।' उन्होंने आगे कहा, 'इसलिए उसकी करतूतें उसके अपने नजरिए से उसी के खिलाफ जा रही हैं। ऐसे में मेरा मानना है कि चीन के अंदर भी ऐसे लोग हैं जो मौजूदा शासन की सोच को गलत मानते हैं और यह भी स्वीकार करते हैं कि ताकत का गैर-जरूरी प्रदर्शन चीन को महंगा पड़ने वाला है। मुझे पूरा विश्वास है कि चीन में भी ऐसा सोचने वाले लोग हैं।'
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चीन ने जमीन के लालच में भारतीयों का विश्वास खोया
उन्होंने कहा कि गलवान घाटी में खूनी झड़प के साथ-साथ पूर्वी लद्दाख में और जगहों पर चीन के दुस्साहस का प्राथमिक परिणाम भारत-चीन के बीच रिश्तों को सामान्य बनाने के प्रयासों को झटके के तौर पर सामने आया। रिश्तों में विश्वास बहाली की प्रक्रिया तब शुरू हुई जब तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी 1988 में चीन गए और उसके बाद कई समझौतों पर दस्तखत हुए। प्रफेसर मोहन ने कहा, 'लेकिन आक्रामक रुख अख्तियार कर लद्दाख में सीमा को एकतरफा बदलने की कोशिश कर चीन ने अपने प्रति भारतीयों के मन में पैदा हो रही विश्वास की भावना को गहरा आघात पहुंचाया और इससे ऐसा माहौल बन गया है जिसमें भारत पर चीन के प्रति अपनी सोच बदलने को मजबूर कर दिया है।' उन्होंने कहा, 'चीन थोड़ी जमीन के लालच में भारतीयों की नजर में अपनी सुधरती छवि फिर बिगाड़ ली। अब भारत की तरफ से मिल रहा उसे आर्थिक सहयोग बड़े पैमाने पर प्रभावित होगा।'
पूर्वी लद्दाख कुछ अलग नहीं, सिर्फ एक कड़ी
प्रफेसर मोहन ने कहा कि चीन का पूर्वी लद्दाख में आक्रामक रुख सिर्फ भारत के प्रति नहीं बल्कि सीमा विवाद में उसके 'आश्चर्यजनक रवैये' की ही एक कड़ी है। उन्होंने कहा, 'शी जिनपिंग के कार्यकाल में बदलते चीन का एक हिस्सा है।' क्या चीन वर्ल्ड ऑर्डर को बदलने की कोशिश कर रहा है? उन्होंने कहा, चीन खुद को अमेरिका के खिलाफ खड़ा करते है। उसे लगता है कि उसके पास ग्लोबल ऑर्डर को बदलने के साधन और क्षमता है, इसलिए अमेरिका को ओवरटेक करना चाहता है। उन्होंने कहा कि चीन के इस नकारात्मक व्यवहार के कारण ही अमेरिका राष्ट्रवादी एशियाई देशों का सहयोगी बनने लगा है। उन्होंने कहा कि आम तौर पर ज्यादातर ताकतवर देश झगड़ा मोल नहीं लेते, खासकर उन देशों से जिनके साथ उनका बड़ा आर्थिक हित सध रहा है।
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चीन ने सबकी उम्मीदों पर फेरा पानी
प्रफेसर सी राजा मोहन ने कहा कि एशिया के देश चीन की तरफ आशाभरी निगाहों से देख रहे थे क्योंकि आर्थिक मामलों में उनका चीन के साथ बड़ी पारस्परिक निर्भरता रही है। हालांकि, आज चीन के दबाव के कारण उन्हें बाकी दुनिया से झटका लग रहा है। उन्होंने कहा कि ज्यादातर देश चीन के साथ आर्थिक सहभागिता की चाहत रखते हैं, लेकिन उसकी विस्तारवादी सोच के कारण अब रिश्ते की समीक्षा करने लगे हैं। उन्होंने कहा, 'लोग अब चीन के विस्तारवादी रवैये के खिलाफ एकजुट होने लगे हैं। शायद बीजिंग को लगा होगा कि उसकी आक्रामकता से प्रभावित होने वाले देश प्रतिक्रिया नहीं देंगे या फिर वो ऐसा करने की हिम्मत ही नहीं जुटा पाएंगे लेकिन हम 5G, क्वाड जैसे नई सांगठनिक साझेदारी के उभरने जैसे मामले देख चुके हैं। अब हम यह देखने लगे हैं कि बाकी दुनिया आसानी से किसी का दबदबा नहीं स्वीकार करने वाली।'