चंडीगढ़
मध्यप्रदेश, राजस्थान के बाद अब कांग्रेस (Congress) के अंदर आपस में 'तलवारबाजी' का खेल पंजाब में शुरू हो चुका है। राज्यसभा सदस्य और पंजाब के सीनियर मोस्ट नेता प्रताप सिंह बाजवा (Pratap Singh Bajwa) और सीएम अमरिंदर सिंह (Captain Amrinder Singh) आमने-सामने हैं। बाजवा प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष भी रहे हैं और अलग-अलग सरकारों में मंत्री भी। बाजवा की कैप्टन अमरिंदर सिंह सरकार से क्या नाराजगी है, वह अपनी इस लड़ाई को कहां तक ले जाएंगे, यह जानने को नवभारत टाइम्स के नैशनल पॉलिटिकल एडिटर नदीम ने बात की बाजवा से। बातचीत के प्रमुख अंश :
कैप्टन अमरिंदर सिंह से आप किस वजह से नाराज हैं?
मेरी नाराजगी की किसी व्यक्ति से है ही नहीं। मेरी नाराजगी तो इस बात को लेकर चुनाव के वक्त अमरिंदर सिंह ने सिख धर्म की सबसे पवित्र पुस्तक गुटका साहिब को हाथ में उठाकर कसम खाई थी वह राज्य के पांच बड़े माफिया को खत्म कर देंगे। चार साल बीत गए हैं, कार्रवाई तो दूर उल्टे उन्हें संरक्षण दिया जा रहा है। बात सियासत की नहीं, धर्म की भी है। मैं झूठी कसम का गुनहगार क्यों बनूं? मुझे भगवान को भी मुंह दिखाना है और जनता को भी।
लेकिन प्रदेश कांग्रेस कमिटी ने तो आपके खिलाफ कार्रवाई की मांग की है?
पंजाब का पीसीसी प्रधान अमरिंदर का ही तोता है। वह वही बोलेगा जो अमरिंदर कहेंगे।
आपसी लड़ाई में कांग्रेस से मध्य प्रदेश निकल गया। राजस्थान में सरकार जाते-जाते बची है और अब पंजाब में भी वही कहानी?
यहां सरकार जाने का कोई खतरा नहीं है। बहुत विशाल बहुमत है लेकिन हमारी लड़ाई राज्य में कांग्रेस के अस्तित्व को बचाने की ही है। अगर अमरिंदर पार्टी का चेहरा बने रहे और अगला चुनाव इन्हीं के नेतृत्व में होता है तो लिखकर ले लीजिए पार्टी की 10 सीट से ऊपर नहीं आएंगी। कांग्रेस खत्म हो जाएगी हमेशा के लिए पंजाब से।
कहा जाता है कि आपका यह सारा दबाव खुद मुख्यमंत्री बनने के लिए है?
मैं यह कह ही नहीं रहा हूं कि मुझे मुख्यमंत्री बनाया जाए। मैं यह कह रहा हूं कि जिसमें भी तीन इंग्रेडिएंट्स-सीनियॉरटी, लॉयलटी और कैपेबिलिटी एक साथ हों, उसे आलाकमान पंजाब का सीएम बना दे। मैं उसके साथ रहूंगा।
इनमें से कौन इंग्रेडिएंट् अमरिंदर सिंह में नहीं है?
एक भी नहीं। वह कोई बाई बर्थ कांग्रेसी नहीं हैं। 1984 में पार्टी छोड़कर अकाली दल में चले गए थे, 14 साल बाद 1998 में लौटे। 2017 में पार्टी का चेहरा न बनाए जाने पर पार्टी छोड़ने की धमकी दे रहे थे। अलग पार्टी बनाकर बीजेपी के साथ चुनाव लड़ने की इनकी बात हो गई थी लेकिन पेच बादल पर���वार पर फंस गया था। अमरिंदर चाहते थे कि बीजेपी उनसे रिश्ता खत्म करे। लेकिन बीजेपी ने कहा था कि उससे रिश्ता खत्म नहीं हो सकता।
कांग्रेस आलाकमान अमरिंदर सिंह के आगे हथियार क्यों डाल देता है?
इसका जवाब तो आलाकमान ही दे सकता है।
आप दोनों के बीच टकराव तभी क्यों बढ़ा जब आप 2013 में पंजाब के चीफ बनाए गए?
अमरिंदर की आदत है कि राज्य में जब पार्टी चुनाव हार जाती है तो चार साल मौज करते हैं। पांचवें साल चूड़ीदार पैजामा पहनकर आगे आ जाते हैं। लगातार दो चुनाव हारने के बाद जब राज्य में पार्टी बिल्कुल खत्म हो गई थी तो आलाकमान ने मुझे 2013 में चेहरा बनाया। 2017 के चुनाव के लिए मैंने पूरी ताकत से पार्टी को खड़ा किया। एक तरह से फसल मेरी बोई हुई थी। पानी मैंने दिया। खाद मैंने डाली। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आते गए और यह दिखने लगा कि राज्य में कांग्रेस लौट रही है तो मेरी तैयार फसल को काटने के लिए अमरिंदर फिर सक्रिय हो गए। हुआ भी वही। मेरी तैयार फसल को वह काट ले गए।
आपको अमरिंदर सिंह के कहने पर ही पंजाब कांग्रेस के अध्यक्ष पद से हटाया गया था?
हटाया नहीं गया था। मैंने पार्टी आलाकमान के कहने पर अपनी कुर्बानी दी थी। अमरिंदर सिंह जब घड़ी-घड़ी पार्टी से अलग होने की धमकी दे रहे थे। आलाकमान प्रेशर में था कि आपसी लड़ाई में पार्टी अगर तीसरा चुनाव भी हार गई तो खत्म हो जाएगी। उन्होंने मुझे बुलाकर कहा था कि आप अपने हो, अपने से ही कुछ मांगा जा सकता है। मैंने कहा कि जी हुकुम करो तो उन्होंने कहा कि आप अपनी कुरबानी दो। मैंने दे दी।
क्या आपको लगता है कि आलाकमान का वह फैसला गलत था?
बिल्कुल गलत था। मैंने राहुल जी से कहा भी था कि तीन साल से मैं काम कर रहा हूं और अब सिर्फ आठ महीने रह गए हैं। अगर सरकार बनती दिख रही है तो मेरी मेहनत की वजह से। आप सीएम का उम्मीदवार अमरिंदर को ही बना दो, प्रदेश का प्रधान मैं रहूंगा। दोनों के बीच आधे-आधे टिकट का बंटवारा करा देना लेकिन अमरिंदर को यह भी मंजूर नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि वह दो पॉवर सेंटर पंजाब में नहीं रहने देंगे।
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इस बार भी कहीं आलाकमान आपसे ही कुर्बानी ना मांग ले?
आलाकमान को तय करना होगा कि वह पंजाब में कांग्रेस के अस्तित्व को बनाए रखना चाहते हैं या नहीं। मैं तो डंके की चोट पर कह रहा हूं कि अमरिंदर सिंह इस बार पार्टी को दस सीट भी नहीं जितवा पाएंगे। किसी भी एजेंसी से सर्वे कराकर पता लगाया जा सकता है।