रांची
राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की आज 73वीं पुण्यतिथि (Mahatma Gandhi Death Anniversary) है, इस मौके पूरा देश उनको याद कर रहा है। 30 जनवरी, 1948 को महात्मा गांधी की हत्या के बाद उनकी अस्थियां देशभर के कई राज्यों में पहुंची थीं। बापू का रामगढ़ से जुड़ाव होने के कारण उनकी अस्थियों का अवशेष रामगढ़ भी पहुंचा था। अस्थियों के अवशेषों को रखकर दामोदर तट पर समाधि स्थल बनाया गया। आज यह समाधि स्थल गांधी घाट के नाम से प्रसिद्ध है। रामगढ़ थाना और पुलिस लाइन से महज कुछ कदम की दूरी पर ही बापू का यह समाधि स्थल है। हर साल दो अक्टूबर और 30 जनवरी को मुक्तिधाम संस्था की ओर से यहां श्रद्धांजलि सभा और भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है। शहर के लोग, जन प्रतिनिधि सहित पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी यहां आते हैं और बापू को याद करते हैं।
धनबाद में गुप्त धन की थैली भेंट की गई थी
आजादी की लड़ाई के दौरान धनबाद में बापू को गुप्त धन की एक थैली भी दान की गई थी। महात्मा गांधी साल 1933 में कोलकाता अधिवेशन से लौटने के दौरान राजेंद्र प्रसाद के साथ धनबाद के मालकेरा स्टेशन के पास कुमारजोरी की त्रिगुनाइट कोठी पहुंचे थे। मौजूदा समय में आउटसोर्सिंग कंपनी की ओर से कोयला खनन किए जाने के चलते इस कोठी का अस्तित्व मिट गया है। अब वहां गहरी खुली खदान, अग्नियुक्त ओबी से निकलता धुआं और कुछ जगहों पर झाड़ियां ही नजर आती हैं। पुराने जानकारों के मुताबिक कोठी के मालिक स्व. मुक्तेश्वर त्रिगुनाइत और भुवनेश्वर त्रिगुनाइत ने आजादी के आंदोलन में महात्मा गांधी को पैसों से भरी थैली इस कोठी में भेंटकर आजादी के इतिहास में धनबाद का नाम अंकित कराया था।
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इस परिवार ने आजादी की जंग में उठाए कई कदम
त्रिगुनाइत परिवार ने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ मोर्चा खोल आजादी के दीवानों की बैठक अपने आवास पर कराई थी। इसमें स्वतंत्रता संग्राम के अनेक योद्धा त्रिगुनाइत के घर पहुंचे थे। यहां स्वतंत्रता आंदोलन को धार देने को बैठक हुई थी। त्रिगुनाइत परिवार के वंशजों के मुताबिक गांधी जी के आने की खबर जब अंग्रेजी हुकूमत के नुमाइंदों को लगी तो वे आग बबूला हो गए। लाइसेंसी हथियार जब्त कर लिया गया था। इसके बावजूद त्रिगुनाइत परिवार गांधीजी को सहयोग करते रहे। आजादी के आंदोलन में धन की आवश्यकता को देखते हुए गांधी जी को गुप्त थैली भेंट की गई थी। इसमें काफी धन था।
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1917 से 1940 के बीच 12 बार झारखंड आए थे महात्मा गांधी
स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान 1917 से 1920 के बीच बापू 12 बार एकीकृत झारखंड (तत्कालीन बिहार का हिस्सा) आए थे। बापू ने न सिर्फ रांची, बल्कि कई शहरों और गांव-कस्बों में जाकर आम लोगों और आदिवासियों से मुलाकात की। 1940 में कांग्रेस अधिवेशन में शामिल होने के लिए रामगढ़ आए थे। कांग्रेस अधिवेशन में जाने के लिए पहले रांची पहुंचे और कोकर के रहने वाले राय साहेब लक्ष्मी नारायण के साथ उनकी नई फोर्ड गाड़ी से रांची से रामगढ़ गए थे। यह कार आज भी सुरक्षित रखी है।