दिल्ली में फ्लाइओवर और मेट्रो का जाल बिछाकर शीला दीक्षित ने दिल्ली का चेहरा तो बदल दिया, लेकिन उनके कई और ऐसे सपने थे, जो अधूरे रह गए। इनमें से कुछ तो ऐसी योजनाएं थीं, जो उनके दिल के नजदीक थीं। मगर, मल्टि एजेंसी की वजह से वह चाहकर भी उन्हें लागू नहीं कर सकीं। इनमें से कुछ तो ऐसी हैं, जो अब तक शुरू नहीं हो सकी हैं।
शीला दीक्षित ने अपने डेढ़ दशक के कार्यकाल में सबसे अधिक फोकस शहर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पर दिया। इसके लिए फ्लाइओवरों की योजना को लागू किया गया और पब्लिक ट्रांसपॉर्ट के लिए सीएनजी के साथ ही मेट्रो प्रॉजेक्ट पर भी जोर दिया। लेकिन पब्लिक ट्रांसपॉर्ट से जुड़े बस रैपिड ट्रांसपॉर्ट सिस्टम (बीआरटीएस) जैसे सिस्टम के लिए कई बार योजना तो बनाई लेकिन उसे पूरी तरह से लागू नहीं कर सकीं।
बीआरटी के आंबेडकर नगर से दिल्ली गेट के पहले कॉरिडोर का उन्होंने निर्माण शुरू कराया लेकिन इसके लिए आलोचनाओं का भी सामना करना पड़ा। शीला दीक्षित चाहती थीं कि बीआरटी कॉरिडोर इस तरह से बने ताकि पब्लिक ट्रांसपॉर्ट के तहत चलने वाली बसों को रफ्तार मिले। उन्हें लगता था कि अगर बसों को रफ्तार मिलेगी तो लोग अपनी गाड़ी छोड़कर बस का इस्तेमाल करेंगे। मगर, पहला ही कॉरिडोर असरदार नहीं दिखा। बल्कि कई जगह तो इस कॉरिडोर में इतना जाम लगा कि उन्हें इस प्रॉजेक्ट से खुद ही पीछे हटना पड़ा। हालत यह हो गई कि पहला कॉरिडोर भी पूरी तरह से नहीं बन पाया। इसके बाद बीआरटी कॉरिडोर की जो भी योजनाएं थीं, वे ठंडे बस्ते में डालनी पड़ गईं।
यमुना सफाई
शीला दीक्षित अक्सर टेम्स नदी का उदाहरण देते हुए यमुना सफाई पर जोर देती रहीं। इसके लिए कई बार उन्होंने फंडिंग का भी ऐलान किया और बाकायदा यमुना सफाई के लिए कुछ कार्य भी शुरू कराने की कोशिश की। इस योजना पर भी बहुत अधिक काम नहीं हो सका। इसकी एक वजह यह भी थी कि इसमें पड़ोसी राज्यों के समर्थन की भी जरूरत थी। यह समर्थन उन्हें नहीं मिल सका। यमुना की सफाई का कोई बड़ा काम नहीं हो सका।
ईस्ट-वेस्ट कॉरिडोर
बतौर मुख्यमंत्री शीला दीक्षित चाहती थीं कि दिल्ली के एक छोर से दूसरे छोर तक जाने के लिए एलिवेटिड रोड बननी चाहिए। बारापूला नाले पर इस तरह की रोड बनाई भी गई। इसी तरह की एक सड़क मयूर विहार से पश्चिमी दिल्ली तक बनाने के लिए योजना बनाई गई। इस योजना को कई बार रोका गया और फिर कागजों में शुरू किया गया। इस योजना में मुख्य आपत्ति डीयूएसी को थी कि यह काफी ऊंचा बनाना होगा, जबकि रेलवे की आपत्ति मिंटो ब्रिज की वजह से थी। फिर यह भी आपत्ति आयी कि इससे प्राइवेट गाड़ी वालों को ही फायदा होगा। तत्कालीन चीफ सेक्रटरी ने प्रस्ताव रखा कि एलिवेटिड रोड पर बसें ही चला दी जाएं। इसके बावजूद यह प्रस्ताव ऐसा अटका कि फाइलों से बाहर नहीं निकल पाया।
सिग्नेचर ब्रिज
वजीराबाद के पास सिग्नेचर ब्रिज प्रॉजेक्ट उनके दिल के नजदीक था। उन्हें लगता था कि इस पुल पर टावर हो, जहां से लोग दिल्ली को देख सकें और इसके आसपास के एरिया में पिकनिक स्पॉट डिवेलप किया जाए। इस ब्रिज को लेकर उन्हें अपनी ही पार्टी के नेताओं का भी विरोध झेलना पड़ा लेकिन उन्होंने इसे शुरू कराया। हालांकि उनके सत्ता में रहते हुए यह प्रॉजेक्ट पूरा नहीं हो सका।
राजीव रत्न आवास योजना
राजीव रत्न आवास योजना के तहत शीला दीक्षित सरकार ने फ्लैट तो तैयार कराए लेकिन उन्हें अलॉट नहीं किया। इसकी वजह केंद्र और दिल्ली सरकार की ब्यूरोक्रेसी के बीच उस वक्त तालमेल न होना था। फ्लैट तैयार हो गए। इसके लिए फॉर्म भी निकाले गए लेकिन अलॉटमेंट नहीं हो सका।