हाइलाइट्स:
- नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपने इशारों पर नचाने वाले चीन को झटका लगा
- ओली ने संसद को भंग करके ऐसा मास्टर स्ट्रोक चला जिसकी कल्पना भी चीन ने नहीं की थी
- अब इस जोरदार पलटवार से घबराया चीन अपने उप मंत्री को आनन-फानन में नेपाल भेज रहा
काठमांडू
चीनी राजदूत हाओ यांकी के बल पर नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को अपने इशारों पर नचाने वाले ड्रैगन को इस हिमालयी देश में जोरदार झटका लगा है। भारत और अमेरिका का साथ पाकर पीएम केपी शर्मा ओली ने संसद को भंग करके ऐसा मास्टर स्ट्रोक चला जिसकी कल्पना भी चीन ने नहीं की थी। अब इस जोरदार पलटवार से घबराया चीन अपने उप मंत्री के नेतृत्व में आज चार चीनी नेताओं को आनन-फानन में नेपाल भेज रहा है।
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माना जा रहा है कि चीन भारत-अमेरिका के करीब आए नेपाल को अपने हाथ से फिसलता देखकर नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के दोनों ही धड़ों के नेताओं पीएम ओली और पुष्प कमल दहल 'प्रचंड' को मनाने के लिए अंतिम प्रयास कर रहा है। नेपाली अखबार काठमांडू पोस्ट के मुताबिक गत महीने में जब नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में तनाव अपने चरम पर था, उस समय चीनी राजदूत हाओ यांकी ने पार्टी के शीर्ष नेताओं और राष्ट्रपति बिद्यादेवी भंडारी से मुलाकात की थी। उन्होंने दोनों ही पक्षों में शांति बनाने का प्रयास किया।
जोरदार झटके से सदमे में आया चीन
चीनी राजदूत की यह सफलता अल्पकालिक रही और जुलाई में एक बार फिर से दोनों ही धड़ों के बीच तीखा विवाद शुरू हो गया। यह विवाद एक बार फिर सुलझ गया। इसके बाद गत रविवार को प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के प्रतिनिधि सभा को भंग करने के फैसले ने न केवल चीनी राजदूत बल्कि पेइचिंग में बैठे उनके आकाओं को हक्का-बक्का कर दिया। ओली के इस जोरदार झटके से सदमे में आया चीन अब चाइनीज कम्युनिस्ट पार्टी (सीपीसी) के अंतरराष्ट्रीय विभाग के वाइस मिनिस्टर गुओ येझोऊ रविवार को यहां काठमांडू भेज रहा है।
विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल में सीपीएन-यूएमएल और माओवादी सेंटर को एक साथ लाने के लिए चीन ने ऐड़ीचोटी का जोर लगा दिया था। चीन के प्रयासों के फलस्वरूप नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी का अस्तित्व आया। अब ओली के कदम से नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी में टूट लगभग निश्चित हो गया, ऐसे में चीन की चिंता काफी बढ़ गई है और उसने दोनों ही धड़ों को एकजुट बनाए रखने के लिए अपनी पूरी ताकत लगा दी है।
भारतीय अधिकारियों के दौरे के बाद बदले ओली के सुर
दरअसल, सीमा मुद्दे को लेकर तनाव के बीच करीब एक साल के लंबे अंतराल के बाद भारत और नेपाल के बीच रिश्तों में अक्टूबर में फिर से गर्मजोशी आई। भारत की खुफिया एजेंसी रॉ के चीफ, सेना प्रमुख जनरल मनोज मुकुंद नरवणे और विदेश सचिव हर्ष वर्द्धन श्रींगला नेपाल की यात्रा पर आए। भारत ने नेपाल के साथ य��� दोस्ती ऐसे समय पर बढ़ाई जब अमेरिका के विदेश मंत्री और रक्षा मंत्री ने इस इलाके में बढ़ते चीन के प्रभाव को कम करने और रणनीतिक सहयोग को बढ़ाने के लिए नई दिल्ली की यात्रा पर आए। भारत की ओर से इतने शीर्ष स्तर पर यात्राओं से चीन टेंशन में आ गया और उसने तत्काल रक्षा मंत्री को नेपाल की यात्रा पर भेजा।
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के एक नेता और स्टैंडिंग कमिटी के मेंबर ने कहा, 'चीनी अधिकारी पिछले कुछ समय से भारत की ओर से की जा रही यात्राओं से चिंतित थे लेकिन पीएम ओली के अचानक से संसद को भंग करने के फैसले से चीनी अंजान थे। ओली के इस मास्टरस्ट्रोक के बाद आनन-फानन में चीनी राजदूत ने प्रचंड और माधव नेपाल सहित एनसीपी के शीर्ष नेताओं के साथ कई बैठकें कीं। यही नहीं उन्होंने नेपाल की राष्ट्रपति से भी मुलाकात की।
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चीन को नेपाल में सता रहा है बड़ा डर
नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता बर्शा मान पुन ने कहा, 'चीनी राजदूत बैठक के दौरान यह जानना चाहती थीं कि वर्तमान में बदली हुई परिस्थिति में क्या चीनी निवेश प्रभावित होगा?' चीन ने पोखरा में अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट बना रहा है और इसके अलावा काठमांडू में रिंग रोड का विस्तार कर रहा है। विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल को लेकर चीन को अपनी सुरक्षा चिंता है और इसी वजह से वह चाहता है कि देश में राजनीतिक स्थिरता रहे और स्थायी सरकार रहे।
नेपाल के पूर्व राजदूत रहे और दो पूर्व प्रधानमंत्रियों के सलाहकार रहे दिनेश भट्टाराई ने कहा, 'चीन ने नेपाल में बड़े पैमाने पर निवेश किया है और भारत के साथ प्रतिस्पर्द्धा कर रहे हैं, इसी वजह से नेपाल में उनका हित बढ़ता ही जा रहा है। अब काठमांडू में अचानक आए राजनीतिक बदलाव से उन्हें निश्चित रूप से चिंतित होना होगा।' चीन को उम्मीद थी कि नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के विभिन्न धड़ों के बीच कुछ ले-देकर सहमति हो जाएगी और पार्टी की एकता बनी रहेगी लेकिन ओली के दांव से ऐसा हुआ नहीं। इस वजह से चीनी नाखुश हैं।