अपराध दो प्रकार के होते हैं -
संज्ञेय अपराध (Cognisable offence) और असंज्ञेय अपराध (Non Cognisable offence)
संज्ञेय अपराध (Cognisable offence)- क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CrPC 1973) में संज्ञेय और असंज्ञेय अपराध की परिभाषा दी गई है।
संज्ञेय अपराध के अंतर्गत आते हैं-
क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CRPC 1973) के शेड्यूल 1 के अनुसार, संज्ञेय अपराध के अंतर्गत,
मुख्यतः अपराध इस प्रकार हैं -
असंज्ञेय अपराध क्या है-
क्रिमिनल प्रोसिजर कोड (CRPC 1973) की धारा 2 (एल) के अनुसार ऐसे अपराध जिनमें पुलिस को बिना वारंट के गिरफ्तार करने का अधिकार प्राप्त नहीं है, वे सभी अपराध असंज्ञेय अपराध कहलाते हैं। भारतीय दंड संहिता की धारा 298 के अनुसार पुलिस बिना वारंट के असंज्ञेय अपराध में गिरफ्तार नहीं कर सकती है।
असंज्ञेय अपराध की श्रेणी में ये सब आता हैं-
'संज्ञेय अपराध पर पुलिस सीधे कार्रवाई कर सकती है और असंज्ञेय अपराध पर कोर्ट के आदेश के बाद पुलिस कार्रवाई करती है। गैर जमानती मामलों में पुलिस अपराधी को 24 घंटे तक हिरासत में रख सकती है। '
हरि नारायण मिश्र, आईपीएस अधिकारी
भारत में अपराध और आपराधिक परीक्षण से निपटने वाले कानून निम्नलिखित हैं-
हर अपराध के पीछे कुछ मुख्य कारण होते हैं जिसमें से कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं-
देश का कानून नागरिकों को सुरक्षा प्रदान करता है। मजबूत सामाजिक व्यवस्था बनाए रखने के लिए कानून व्यवस्था का सक्षम और सशक्त होना अति आवश्यक है। इसलिए बेहद जरूरी हो जाता है अपने अधिकारों को समझना और उनके उपयोग को जानना। पुलिस थाना और पुलिस को लेकर डरने की आवश्यकता नहीं बल्कि समझदारी से अपने अधिकारों के प्रति जागरूक होने की जरूरत है। अगर गिरफ्तारी की नौबत आए तो जान लेना चाहिए अपने अधिकारों के बारे में, आइए जानते हैं उन अधिकारों के बारे में जो गिरफ्तारी के वक्त जानना जरूरी है-
'अनुच्छेद 22 में आपको यह अधिकार प्राप्त होता है कि आप यह जान सकते हैं कि हिरासत के विरुद्ध आपका संरक्षण का अधिकार क्या है '
सुभाष चंद्र दुबे, आईपीएस अधिकारी
' जब भी गिरफ्तारी की नौबत आती है और आपको किसी वजह से पुलिस स्टेशन जाना पड़ता है तो आप अधिकारी से अपने अधिकारों को लेकर बोल सकते हैं और उनका उपयोग कर सकते हैं।'
जीतेन्द्र राणा, आईपीएस अधिकारी
'आपको कानून अधिकार देता है कि आप अपनी गिरफ्तारी के विषय में जान सकते हैं। आपको अपने अधिकारों के प्रति आवश्यक तौर पर जागरूक होना चाहिए। कानून आपका दोस्त होता है और पुलिस भी आपकी मदद के लिए होती है। '
दीपक वर्णवाल, आईपीएस अधिकारी
गिरफ्तारी: पहला अधिकार
सीआरपीसी की धारा 50 (1) के तहत पुलिस अगर किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करती है तो गिरफ्तार किए गए व्यक्ति को उसका कारण बताना होगा। यह जानना उसका अधिकार है।
गिरफ्तारी: दूसरा अधिकार
गिरफ्तारी:चौथा अधिकार
जो अरेस्ट मेमो होता है उसमें गिरफ्तार किए गए व्यक्ति से भी हस्ताक्षर करवाना जरूरी होता है। उस हस्ताक्षर के बिना वह अधूरा माना जायेगा।
गिरफ्तारी: छठवां अधिकार
गिरफ्तारी: सातवां अधिकार
सीआरपीसी की धारा 41D के अनुसार हिरासत में लिए गए व्यक्ति को यह अधिकार प्राप्त है कि वह पुलिस जांच के दौरान कभी भी अपने वकील से मिल सकता है और बात कर सकता है। अपने परिजनों से भी मुलाकात कर सकता है और बातचीत कर सकता है।
गिरफ्तारी: नौवां अधिकार
महिलाओं की गिरफ्तारी के संबंध में,
गिरफ्तारी: दसवां अधिकार
सीआरपीसी की धारा 55 (1) के अनुसार जिस व्यक्ति को गिरफ्तार किया जायेगा उसकी सुरक्षा और स्वास्थ्य का ध्यान पुलिस की जिम्मेदारी होगी।
'सीआरपीसी की धारा 57 के तहत पुलिस किसी व्यक्ति को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में नहीं रख सकती है, अगर पुलिस किसी को 24 घंटे से ज्यादा हिरासत में रखना चाहती है तो उसको मजिस्ट्रेट से ही इजाजत लेनी होगी और मजिस्ट्रेट इस संबंध में इजाजत किस आधार पर दे रहा है उसका विवरण कारण सहित भी बताएगा'
सुरेंद्र चौधरी, आईपीएस अधिकारी