तुर्की के न्यूक्लियर वेपन बनाने की इच्छा जाहिर करने के बाद परमाणु प्रसार के लिए बदनाम रहा पाकिस्तान एक बार फिर सवालों के घेरे में है। 15 साल पहले पाकिस्तान के परमाणु तस्कर अब्दुल कादिर खान ने स्वीकार किया था कि उसने कुछ देशों को परमाणु तकनीक बेची थी और उसका अवैध निर्यात किया था। अब डेढ़ दशक बाद यह मुद्दा फिर से गरम हुआ है क्योंकि तुर्की के राष्ट्रपति रिजेप तैय्यप एर्दोगन ने हाल ही में अपनी पार्टी की एक बैठक में कथित तौर पर तुर्की को न्यूक्लियर पावर बनाने की इच्छा जाहिर की है।
तुर्की ने जताई न्यूक्लियर पावर बनने की इच्छा
एर्दोआन ने अपनी पार्टी के एक करीबी नेता से हाल ही में कहा था, 'कुछ देशों के पास परमाणु क्षमता से लैस मिसाइलें हैं....(लेकिन वेस्ट का जोर है) हमारे पास वह नहीं हो सकता। इसे मैं मंजूर नहीं कर सकता।'
एर्दोआन के बयान के बाद वॉशिंगटन में तेज हुई हलचल
एर्दोआन के इस बयान के बाद अमेरिका में हलचल तेज हो गई है। न्यू यॉर्क टाइम्स ने सोमवार को अपनी रिपोर्ट में सवाल उठाया, 'अगर अमेरिका इस तुर्किश नेता को अपने कुर्द सहयोगियों को बर्बाद करने से नहीं रोक सका तो वह उन्हें परमाणु हथियार बनाने या ईरान की तरह ऐसा करने के लिए परमाणु तकनीक इकट्ठा करने से कैसे रोक सकता है?'
तुर्की का पाकिस्तान के कुख्यात परमाणु तस्कर अब्दुल कादिर खान से लिंक
रिपोर्ट में आगे लिखा गया है, 'तुर्की पहले ही बम बनाने के प्रोग्राम पर काम कर रहा है, यूरेनियम का भंडार जमा किया हुआ है और रिएक्टरों से जुड़े रिसर्च कर रहा है। तुर्की का परमाणु दुनिया के कुख्यात कालाबाजारी पाकिस्तान के अब्दुल कादिर खान के साथ रहस्यमय समझौता है।'
अब्दुल कादिर खान तुर्की की कंपनियों के जरिए मंगवाता है परमाणु सामग्री
लंदन के थिंक टैंक इंटरनैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ स्ट्रेटिजिक स्टडीज ने कुख्यात परमाणु तस्कर अब्दुल कादिर खान के नेटवर्क पर 'न्यूक्लियर ब्लैक मार्केट' नाम से स्टडी की थी। स्टडी के मुताबिक तुर्की की कंपनियों ने अब्दुल कादिर खान को यूरोप से परमाणु सामग्रियों को आयात करने में मदद की है।
पाक के कुख्यात परमाणु तस्कर ने उत्तर कोरिया, ईरान, लीबिया को बेची तकनीक
पाकिस्तान के इस परमाणु वैज्ञानिक पर उत्तर कोरिया, ईरान और लीबिया को परमाणु तकनीक बेचने का आरोप है। अब ऐसी चर्चाएं जो पकड़ रही हैं कि तुर्की उसका चौथा कस्टमर है। खुफिया रिपोर्ट्स भी इस तरफ इशारा कर रही हैं। खान का न्यूक्लियर नेटवर्क मलयेशिया तक फैला हुआ है।
खान ने टीवी पर कबूली थी परमाणु कालाबाजारी की बात
पाकिस्तान द्वारा परमाणु तकनीक बेचे जाने का मामला 2004-2005 में सामने आया। उस वक्त अमेरिका के बुश प्रशासन को अफगानिस्तान में पाकिस्तान की जरूरत थी। उसी दौरान अब्दुल कादिर खान ने परमाणु तस्करी की बात को टीवी पर स्वीकार किया था। हालांकि, खान ने दावा किया था कि परमाणु तकनीक बेचने का काम उसने अपनी मर्जी से किया था, इसमें पाकिस्तानी सरकार की कोई भूमिका या उसकी मंजूरी नहीं थी।
पाकिस्तान सरकार के शह पर खान के की थी परमाणु तस्करी
वैसे, यह स्पष्ट था कि खान ने सरकारी मशीनरी और उसकी सुविधाओं का इस्तेमाल करते हुए परमाणु तकनीक बेची थी। यह तथ्य ही उसके इस झूठ की हवा निकालने के लिए काफी था कि इसके पीछे निजी तौर पर वह जिम्मेदार था न कि पाकिस्तान।
दिखावा के लिए खान एक तरह से घर म���ं नजरबंद
परमाणु प्रसार के लिए दोषी और गैरजिम्मेदार मुल्क की छवि से पीछा छुड़ाने के लिए पाकिस्तान के तत्कालीन सैन्य शासक परवेज मुशर्रफ ने डैमेज कंट्रोल के तहत अब्दुल कादिर खान के खिलाफ कार्रवाई का दिखावा किया। खान को एक तरह से घर में नजरबंद कर दिया गया। यह सब इसलिए किया गया कि अंतरराष्ट्रीय समुदाय कहीं पाकिस्तान पर सख्त प्रतिबंध न लगा दे।
हाल ही में कराची यूनिवर्सिटी में दिखा था अब्दुल कादिर खान
अब्दुल कादिर खान हाल ही में सार्वजनिक तौर पर दिखा था। कराची यूनिवर्सिटी के एक कार्यक्रम में उसने तुर्की और मलयेशिया को उन देशों में बताया जिन्हें पाकिस्तान को बढ़ावा देना चाहिए।
हाल के दिनों में तुर्की और मलयेशिया खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े रहे
आतंकवाद को प्रायोजित करने, समर्थन देने की वजह से अंतरराष्ट्रीय समुदाय में अलग-थलग पड़े पाकिस्तान ने हाल ही में तुर्की और मलयेशिया के साथ मिलकर इस्लामी गठबंधन बनाने की कवायद की है। चीन के अलावा यही दो ऐसे देश हैं जो हाल के हफ्तों में खुलकर पाकिस्तान के साथ खड़े हुए।
आतंकवाद को समर्थन को लेकर पाक को FATF से मिली वॉर्निंग
दूसरी तरफ, पाकिस्तान का सदाबहार दोस्त चीन चाहकर भी आतंकवाद के मसले पर इस्लामाबाद को चेतावनी देनी पड़ी। टेरर फंडिंग और मनी लॉन्ड्रिंग की निगरानी करने वाली अतंरराष्ट्रीय संस्था फाइनैंशल ऐक्शन टास्क फोर्स (FATF) की अध्यक्षता अभी चीन के पास है। इसके बाद भी पैरिस में हुई FATF की हालिया बैठक में पाकिस्तान को न सिर्फ ग्रे लिस्ट में बरकरार रखा गया, जबकि उसे अगले 4 महीनों में आतंकवाद के खिलाफ ठोस कार्रवाई करने की सख्त हिदायत भी दी गई।