पाकिस्तान (Pakistan) की आफत कम होने का नाम नहीं ले रही. अगले एक-दो हफ्ते में लंदन हाईकोर्ट (High Court of Justice) उसके ऊपर 350 करोड़ रुपये का वो बम गिराने वाला है, जिस पर वो लंबे समय से कुंडली मारकर बैठा है. लंदन कोर्ट आदेश दे सकती है कि पाकिस्तान को ये मोटी रकम भारत को वापस करनी होगी. 70 साल पहले हैदराबाद के निजाम (Nizam of Hyderabad) ने पाकिस्तान को ये रकम लोन के रूप में दी थी.
लंदन हाईकोर्ट ने जून में इस मामले पर दो हफ्ते का स्पेशल ट्रायल किया और संकेत दिया कि अगस्त के आखिर तक वो फैसला सुना देगा. ये पूरी कहानी घुमावदार तो है ही साथ ही दिलचस्प भी है. 1948 में हैदराबाद के निजाम उस्मान ने 20 करोड़ रुपये की रकम जो पाउंड की शक्ल में लंदन के बैंक में जमा की थी, वो पिछले 70 सालों में करीब 350 करोड़ रुपये हो चुकी है.
जब देश का बंटवारा हुआ तो पाकिस्तान के शासक मोहम्मद अली जिन्ना हैदराबाद के निजाम उस्मान खान को फुसलाने में लग गए कि वो अपने राज्य का पाकिस्तान में विलय कर लें. हैदराबाद ना केवल देश के सबसे बड़े राज्यों में था बल्कि सबसे संपन्न रियासतों में भी था.
पाकिस्तान की हालत तब काफी खस्ता थी. इस देश का जन्म ही तब कर्ज के साथ हुआ था. जिन्ना के कहने पर निजाम उन्हें 20 करोड़ रुपये लोन के रूप में देने को तैयार हो गए थे. वही धन अब पाकिस्तान को लौटाना है. पिछले 70 सालों से ये रकम भारत-पाकिस्तान के बीच बड़े विवाद का विषय बनी हुई है.
हैदराबाद के निजाम उन दिनों दुनिया के सबसे धनवान लोगों में गिने जाते थे. कुछ किताबों में ये कहा गया कि तब वो भारत की तुलना में पाकिस्तान की ओर ज्यादा झुके हुए थे. इसलिए पाकिस्तान को गुपचुप तरीके से 20 करोड़ रुपये का लोन देने के लिए तैयार हो गए
तब पाकिस्तान पर था 40 करोड़ का कर्ज
जाने माने लेखक पैट्रिक फ्रैंच की किताब "लिबर्टी आर डेथ" में लिखते हैं, पाकिस्तान ने अपने राजकोष में बीस करोड़ रुपयों के साथ जीवन शुरू किया था. उन पर करीब 40 करोड़ रुपये का कर्ज था. अकेले सशस्त्र बलों पर ही हर महीने पांच करोड़ रुपये खर्च किये जा रहे थे. जब हैदराबाद के निजाम इस नए राष्ट्र को बीस करोड़ रुपये का ऋण देने पर राजी हो गए तो पाकिस्तान के हुक्मरानों ने खासी राहत महसूस की. जिन्ना लंबे समय से इसके लिए निजाम को मनाने में लगे थे.
तब घटनाक्रम में नाटकीय बदलाव आया
इस पूरे घटनाक्रम में तब नाटकीय बदलाव आ गया, जब भारतीय फौजों ने 18 सितंबर 1948 को हैदराबाद पर कब्जा कर लिया. हालांकि इससे पहले ही निजाम पाकिस्तान के लिए 20 करोड़ रुपये (करीब एक मिलियन पाउंड) की व्यवस्था कर चुके थे. उन्होंने लंदन में इसके लिए एक एजेंट भी तय कर दिया था. ये धन लंदन स्थित पाकिस्तान के उच्चायुक्त हबीब इब्राहिम रहमतुल्लाह के अकाउंट में जमा होना था. हबीब तभी नए पाकिस्तानी उच्चायुक्त बनकर लंदन आए थे.
20 सितंबर 1948 को ये धन उस नेशनल वेस्टमिंस्टर बैंक की लंदन शाखा में जमा हो गया, जिसे अब नेस्टवेस्ट बैंक के रूप में जाना जाता है. हालांकि ये अब रॉयल बैंक ऑफ स्कॉटलैंड ग्रुप का बैंक है. खाते में धन जमा होने की बात जानकर पाकिस्तान की सरकार खुश हो गई, हालांकि इस रकम का उनके खाते में ट्रांजिक्शन होने में कुछ समय लगना था. 20 सितंबर 1948 को हैदराबाद के निजाम की ओर से लंदन बैंक में दस लाख सात हजार नौ सौ चालीस पाउंड (10,07,940 पाउंड) और नौ शिलिंग ट्रांसफर किये गए थे.
जब भारत सरकार को इसका पता लगा
इस बीच भारत सरकार को जब इसका पता लगा तो उसने निजाम से तुरंत पूछताछ की. तकनीकी तौर पर भारत में विलय के बाद निजाम ऐसा नहीं कर सकते थ���. निजाम ने सफाई दी कि कि उन्हें तो पता ही नहीं कि उनका धन पाकिस्तान को दिया गया है. उन्होंने भारत सरकार से कहा, ये काम बगैर उनकी जानकारी के उनके मंत्री ने किया है.
माना जाता है कि ये रकम पाकिस्तान को देने का मन हैदराबाद के निजाम उस्मान अली खान तब बनाया था जब वो इस दुविधा में थे कि पाकिस्तान के साथ जाएं या फिर भारत में विलय करें. इसी दौरान उन्होंने पहले 20 करोड़ का लोन पाकिस्तान को दिया. फिर इसे वापस लेने की ओर कदम बढ़ाया.
भारत की आजादी के समय लंदन ने तमाम स्वतंत्र रियासतों को ये विकल्प दिया था कि वो फैसला करें कि वो अपना विलय भारत के साथ चाहती हैं या फिर पाकिस्तान के साथ. तब हैदराबाद ने खुद स्वतंत्र रखने का फैसला किया था.
निजाम के उत्तराधिकारी मुकर्रम जेह जो तुर्की में रहते हैं, उनका दावा है कि ये रकम हैदराबाद ने पाकिस्तान को अपने सेल्फ डिफेंस के लिए हथियार खरीदने के लिए दी थी. इस केस को हैदराबाद फंड केस के रूप में जाना जाता है.
लंदन के वेस्टमिंस्टर बैंक ने इस पूरी मोटी रकम को ही सीज कर दिया.
निजाम ने बैंक से धन वापस करने को कहा
हैदराबाद पर भारतीय सेनाओं के कब्जे के बाद पाकिस्तान की कमजोरी को निजाम ने भांप लिया था. उन्हें अंदाज हो गया था कि अब पाकिस्तान से उन्हें किसी तरह की कोई मदद नहीं मिलने वाली. यहां तक कि उनसे वादा करने के बाद पाकिस्तान ये मामला संयुक्त राष्ट्र में भी नहीं उठा सका.
हताश निजाम ने 27 सितंबर को वेस्टमिंस्टर बैंक से अनुरोध किया कि ये धन उन्हें वापस कर दिया जाए, क्योंकि ये बगैर उनकी जानकारी के पाकिस्तान उच्चायुक्त के खाते में डाली गई है. जब बैंक ने मना कर दिया तो निजाम ने उस पर लंदन की अदालत में मुकदमा ठोक दिया.
रकम को विवादित मानकर बैंक ने सीज कर लिया. उसके बाद ये धन लगातार बढ़ता रहा है. अब ये बढ़कर करीब 350 करोड़ रुपये के आसपास पहुंच चुकी है.
बैंक ने निजाम से कहा कि रकम तभी वापस मिल पाएगी, अगर पाकिस्तान रजामंद हो. पाकिस्तान क्यों रजामंद होता. निजाम के सारे अनुरोध पाकिस्तान के सामने फेल हो गए. उल्टे पाकिस्तान ने तो यहां तक कह डाला, ये रकम तो उसकी है.
अदालत में 70 सालों से जारी है मुकदमा
अदालत में ये मामला पिछले सत्तर सालों से जारी है. भारत का कहना था कि चूंकि ये रकम हैदराबाद के भारत में विलय के बाद पाकिस्तान के अकाउंट में भेजी गई थी, लिहाजा ये कानूनी तौर पर गलत है. इस कानूनी लड़ाई में दो पक्ष हैं. एक भारत सरकार और दूसरा पक्ष है पाकिस्तान का लंदन स्थित उच्चायुक्त. हालांकि भारतीय पक्ष में भारत सरकार के साथ निजाम के मौजूदा उत्तराधिकारी और भारतीय राष्ट्रपति भी शामिल हैं. इस कानूनी लड़ाई में पाकिस्तान को झटके भी लग चुके हैं.
निजाम के वंशज और हैदराबाद के आठवें निजाम प्रिंस मुकर्रम जेह और उनके भाई मुफ्फखम जेह इस कानूनी लड़ाई में भारत सरकार के साथ दे रहे हैं ताकि लंदन के नेटवेस्ट बैंक में करीब 70 साल से रखी ये मोटी धनराशि बाहर आए. इसके लिए मौजूदा निजाम और उनके भाई ने लंदन विदर्स लॉ फर्म की सेवाएं ले रखी हैं. उनका कहना है कि उन्हें उम्मीद है कि उनके दादा की जिस रकम पर पाकिस्तान कुंडली मारकर बैठा है, वो अब उन्हें वापस मिल पाएगी. इसी साल जून में इस मामले का दो हफ्ते लंबा ट्रायल हुआ.
अगस्त के आखिर तक आ सकता है फैसला
अब इस मामले का फैसला आने वाला है. बेशक इस मुकदमे में पाकिस्तान एक अहम पक्ष है लेकिन वो साबित नहीं कर पाया कि ये रकम उसकी है. सबूतों और दस्तावेजों के आधार पर ये मामला भारत के पक्ष में ज्यादा है. अगर फैसला भारत के पक्ष में हुआ तो पाकिस्तान पर 350 करोड़ का एक ऐसा बम गिरेगा जो इस पतली हालत में उसके लिए किसी बड़े झटके से कम नहीं होगा.
इस केस में पिछले कुछ सालों से लगातार घुमाव और उतार-चढ़ाव आते रहे हैं. अदालत ने पिछले दिनों ये माना भी कि भारत के तर्कों में ज्यादा दम है बजाए पाकिस्तान के. पाकिस्तान केवल यही कह रहा है कि ये रकम उसकी है लेकिन इसके पक्ष में कोई ठोक तर्क या सबूत पेश नहीं कर पाया है.
पाकिस्तान का विदेश मंत्रालय भी केस जीतने के लंबे चौड़े दावे करता रहा है, वहीं भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि चूंकि ये मामला अदालत के सामने विचाराधीन है, लिहाजा कुछ बोलना ठीक नहीं होगा. हालांकि भारत के विदेश मंत्रालय स्वीकार करता है कि मौजूदा जज ने माना है कि भारत की बात ज्यादा दमदार है. वर्ष 2015 में इसी मामले में पाकिस्तान को अदालत झटका देती हुए कह चुकी है कि वो भारत को इस केस के कानूनी खर्च का भुगतान करे.