आज हम मध्य प्रदेश में कांग्रेस और बीजेपी के बीच खेली गई राजनीतिक होली का विश्लेषण करेंगे. इस कहानी का सार कुछ ऐसा है कि आज की होली कांग्रेस के लिए बदरंग साबित हुई है और मध्य प्रदेश में बीजेपी के चेहरे पर सत्ता का गुलाल चढ़ गया है. मध्य प्रदेश में कांग्रेस के कद्दावर नेताओं में से एक ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया और अब वो अब कभी भी बीजेपी में शामिल हो सकते हैं. इसके अलावा ज्योतिरादित्य सिंधिया के करीबी 22 विधायकों ने भी अपने पद से इस्तीफा दे दिया है. यानी होली के दिन एक तरफ तो कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया से हाथ धो लिया है तो दूसरी तरफ कांग्रेस के हाथ से मध्य प्रदेश की सत्ता भी जाने वाली है क्योंकि इन विधायकों के इस्तीफे से कांग्रेस अल्पमत में चली जाएगी और अगर फ्लोर टेस्ट हुआ तो कांग्रेस के लिए बहुमत साबित करना लगभग असंभव होगा.
आज सुबह ज्योतिरादित्य सिंधिया ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और गृहमंत्री अमित शाह से मुलाकात की. इस मुलाकात के लिए सिंधिया अपनी गाड़ी खुद चलाकर प्रधानमंत्री से मिलने पहुंचे और मुलाकात के बाद वो गृहमंत्री अमित शाह की गाड़ी से वहां से निकले. यानी पहले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने अपने राजनीतिक करियर का स्टीयरिंग व्हील थामा और फिर अपने नए नेता के मार्ग दर्शन में नए राजनीतिक सफर पर निकल पड़े.
इस मुलाकात के थोड़ी देर बाद सिंधिया ने ट्विटर पर अपना इस्तीफा सबके साथ शेयर किया. ये इस्तीफा उन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भेजा था. इस इस्तीफे में करीब 142 शब्द हैं और ये 142 शब्द 135 साल पुरानी कांग्रेस पार्टी के पतन की पूरी कहानी बताते हैं. इसलिए आज हम ज्योतिरादित्य सिंधिया के एक-एक शब्द का आपके लिए विश्लेषण करेंगे. इसमें वो लिखते हैं कि उन्होंने 18 वर्षों तक कांग्रेस के लिए काम किया और अब ये समय उनके लिए आगे बढ़ने का है. ठीक वैसे ही जैसे 18 साल का हो जाने के बाद कोई युवा खुद अपने लिए फैसले लेने में सक्षम हो जाता है. वो आगे लिखते हैं कि इस रास्ते पर जाने के लिए वो पिछले एक साल में सबसे ज्यादा मजबूर हुए हैं. उन्होंने लिखा है कि उनका उद्देश्य हमेशा से अपने राज्य और देश के लोगों की सेवा करना रहा है लेकिन वो कांग्रेस में रहते हुए ऐसा नहीं कर पा रहे थे. सिंधिया ने आगे लिखा है कि वो अपने कार्यकर्ताओं की इच्छा का सम्मान करते हुए एक नई शुरुआत करना चाहते हैं. इसके बाद उन्होंने कांग्रेस के अपने साथी नेताओं को धन्यवाद कहते हुए अपनी बात समाप्त कर दी.
इस इस्तीफे पर 9 मार्च यानी कल की तारीख है और इसे देखकर साफ होता है कि सिंधिया कांग्रेस छोड़ने का फैसला पहले ही कर चुके थे. सिंधिया के कांग्रेस छोड़ने के फैसले से साफ है कि वो अपनी ही पार्टी में उपेक्षा का शिकार थे. दिसंबर 2018 में मध्य प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनी थी और इसमें ज्योतिरादित्य सिंधिया की बहुत बड़ी भूमिका थी क्योंकि उनके युवा चेहरे को आगे रखकर ही कांग्रेस ने ये चुनाव जीता था..लेकिन कांग्रेस ने ज्योतिरादित्य सिंधिया को मुख्यमंत्री ना बनाकर कमलनाथ को कुर्सी पर बिठा दिया और सिंधिया की नाराजगी की वजह से मध्य प्रदेश की ये लड़ाई कमल बनाम कमल वाली हो गई. यानी एक तरफ कमल के निशान वाली बीजेपी तो दूसरी तरफ मुख्यमंत्री कमलनाथ.
दूसरी बात ये है कि शायद सिंधिया को ये एहसास हो गया था कि कांग्रेस में एक परिवार के सामने किसी की नहीं चलती और जब भी कोई अपने हक की बात करता है तो उसे किनारे कर दिया जाता है या फिर बाहर का रास्ता दिखा दिया जाता है. सिंधिया के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के ही कई बड़े नेता अपनी पार्टी पर सवाल उठाने लगे हैं. ऐसे ही एक नेता हैं कुलदीप बिश्नोई. कुलदीप बिश्नोई ने सिंधिया के इस्तीफे के बाद ट्वीट किया और लिखा कि सिंधिया का जाना कांग्रेस के लिए एक बड़ा झटका है, वो पार्टी के लिए एक स्तंभ की तरह थे. कांग्रेस के नेताओं को उन्हें मनाने की कोशिश करनी चाहिए थी. उन्होंने ये भी लिखा है कि सिंधिया की तरह कांग्रेस में और भी कई ऐसे बड़े नेता हैं जो खुद को अलग-थलग महसूस करते हैं. कुलदीप बिश्नोई ने ये भी लिखा है कि भारत की सबसे पुरानी पार्टी को ऐसे युवा नेताओं की कद्र करनी चाहिए जो कठिन परिश्रम करते हैं और जनता की आवाज बनना जानते हैं.
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विडंबना ये है कि आज ही ज्योरादित्य सिंधिया के पिता माधव राव सिंधिया का जन्मदिन भी है और आज अगर वो जीवित होते तो उनकी उम्र 75 वर्ष होती. उम्र के इस पड़ाव पर बेटे को अपने नक्शे कदम पर चलते हुए देखकर एक पिता को कैसा महसूस होता ये आज हम आपको अपने विश्लेषण में बताएंगे. अमेरिका की हार्वर्ड यूनिवर्सिटी से अर्थशास्त्र की पढ़ाई करने वाले ज्योतिरादित्य सिंधिया ने आज राजनीतिक शास्त्र की नई परिभाषा गढ़ दी है लेकिन उन्होंने ऐसा क्यों किया है. ये समझने के लिए आपको आज इतिहास में चलना होगा. कहते हैं कि इतिहास खुद को दोहराता है और राजनीति में तो इतिहास खुद को जरूर दोहराता है. आज से 24 वर्ष पहले माधव राव सिंधिया ने भी लोकसभा टिकट ना मिलने की वजह से कांग्रेस छोड़ दी थी. ये 1996 का साल था, जब कांग्रेस ने माधव राव सिंधिया को टिकट देने से इनकार कर दिया था. पार्टी छोड़ने के बाद सीनियर सिंधिया ने मध्य प्रदेश विकास कांग्रेस नाम से अपनी एक अलग पार्टी बना ली थी. माधव राव सिंधिया की पार्टी 1996 में संयुक्त मोर्चा की सरकार का हिस्सा थी लेकिन 1998 में उन्होंने अपनी पार्टी का विलय एक बार फिर कांग्रेस में कर दिया.