न्यूयॉर्क। भारतीय राजदूत और संयुक्त राष्ट्र में भारत के स्थायी प्रतिनिधि सैयद अकबरुद्दीन से जब एक पत्रकार ने सवाल किया कि क्या ये प्रतिबंध एक खुले लोकतंत्र होने की भारत की छवि को कमजोर करते हैं? अकबरुद्दीन ने इस पत्रकार को करारा जवाब दिया।
अकबरुद्दीन ने कहा कि हमारे सवालों का किसी ने जवाब नहीं दिया। जो लोग (चीनी और पाकिस्तानी राजदूत) यहां आए थे, वो ऐसे ही चले गए। एक खुले लोकतंत्र के प्रतिनिधि के रूप में मैं (सवालों के) जवाब देने को तैयार हूं।
प्रेस कॉन्फ्रेंस खत्म कर जब अकबरुद्दीन जाने लगे तभी किसी पत्रकार ने पूछ लिया कि क्या ऐसे प्रतिबंधों से भारत के एक खुले लोकतंत्र होने की छवि कमजोर नहीं पड़ती? सवाल ऐसा था कि अकबरुद्दीन वापस आए और उन्होंने पूरी दुनिया की मीडिया को भारत में लोकतंत्र के मायने समझा दिए।
उन्होंने कहा, 'लोकतंत्र फले-फूले, इसके लिए शांति बरकरार रहना बेहद जरूरी है। इसलिए जायज प्रतिबंध लगाए गए हैं। हम उनमें ढील दे रहे हैं। हमें यहां नहीं तय करना चाहिए कि इसे कितनी तेजी से और कैसे करना है।
उन्होंने आगे कहा कि हमारी दिशा और चाल तय है। हो सकता है आप इस स्पीड से खुश न हों, ऐसे और भी लोग हो सकते हैं, लेकिन जमीन पर ऐसे लोग काम कर रहे हैं जो समर्पित हैं और लोकतांत्रिक ढंग से चुने गए प्रतिनिधियों के अधिन काम कर रहे हैं, वही इस बारे में तय करेंगे। उन्होंने पत्रकारों से कहा कि भारत एक जीवंत, संपन्न लोकतंत्र है और हम रोज इसे जीते हैं।