हम सभी इस बारे में जानते हैं कि पीरियड्स के दौरान महिलाओं को पूजा करने, मंदिर जाने, खाना बनाने यहां तक कि कई घरों में तो रसोई में प्रवेश करने की भी इजाजत नहीं होती है। ऐसा सिर्फ गांव तक सीमित नहीं है। गौर करने पर आपको शहरों में भी ऐसे कई घर देखने को मिल जाएंगे। अब सवाल यह उठता है कि पीरियड्स होने पर आखिर ऐसा क्या बदल जाता है कि महिलाओं को अपवित्र मान लिया जाता है?
शुरुआत का कारण
-पीरियड्स महिलाओं को मिली एक ऐसी शक्ति है, जो प्रकृति के समान ही उन्हें दुनिया को आगे बढ़ाने की योग्यता देती है। फिर जिस प्रक्रिया का दुनिया को आगे बढ़ाने में अहम योगदान हो, वह अपवित्र कैसे हो सकती है?
-इस सवाल पर गायनोकॉलजिस्ट डॉक्टर सोनिया चावला कहती हैं कि महिलाओं को पूजा ना करने और खाना ना बनाने की शुरुआत के पीछे यह मानसिकता होना माना जाता है कि उन्हें इस दौरान आराम की जरूरत होती है। क्योंकि पीरियड्स के कारण होने वाले दर्द और हॉर्मोनल बदलाव से महिलाओं के शरीर में काफी कमजोरी आ जाती है।
धर्म से जुड़ने का कारण
- अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए डॉक्टर सोनिया कहती हैं कि पुराने समय में धर्म में लोगों की बहुत आस्था थी। यही वजह है कि एजुकेशन से जुड़ी ज्यादातर चीजों को धर्म से जोड़ दिया जाता रहा है। पीरियड्स में पूजा ना करने का कारण यह माना जाता है कि पुराने समय में पूजा पद्धति मंत्रोच्चार के बिना पूरी नहीं होती थी। या कहिए कि मंत्रोच्चार द्वारा ही पूजा की जाती थी।
-मंत्रोच्चार को यदि पूरी धार्मिक प्रक्रिया शुद्धि और उच्चारण का ध्यान रखकर किया जाए तो इसमें शरीर की बहुत ऊर्जा खर्च होती है। क्योंकि पीरिड्स में महिलाओं का शरीर पहले से ही कमजोर हो जाता है, ऐसे में अगर वे मंत्रोच्चार करेंगी तो उनके शरीर को और अधिक ऊर्जा की जरूरत होगी। साथ ही वे पूजा में ध्यान नहीं लगा पाएंगी। इसलिए महिलाओं को पूजा करने की मनाही थी। जो बाद में एक रूढ़िवादी सोच बन गई।
किचन में क्यों नहीं जाएंगी महिलाएं?
-आखिर महिलाएं अगर पीरियड्स के दौरान रसोई में चली जाएं तो क्या हो जाता है? इस पर डॉक्टर चावला कहती हैं कि रसोई में ना जाने की परंपरा के पीछे हमारा सामाजिक ताना-बाना है। बीते वक्त में हमारे समाज में जॉइंट फैमिलीज हुआ करती थीं। पूरा कुटुंब एक हवेली में साथ रहा करता था।
-इसलिए भोजन भी बहुत अधिक मात्रा में बनता था। साथ ही उस समय खाद्यपदार्थों का बाजारीकरण नहीं हुआ था तो महिलाओं के पास काम भी बहुत अधिक हुआ करते थे। जैसे, आटा, दाल, मसाले जैसी सभी चीजें घरों में तैयार की जाती थीं।
-इन सभी कामों से महिलाओं को कुछ दिन आराम मिल सके। इस कारण उनके लिए पीरियड्स के दौरान रसोई में ना जाने की परंपरा की शुरुआत हुई होगी। ऐसा हम पीरियड्स के दौरान महिलाओं की फिजिकल और मेंटल स्थिति को देखते हुए कह सकते हैं। क्योंकि उस जमाने में ना तो पैड्स हुआ करते थे और ना ही वजाइनल वॉश। साथ ही पेन किलर के रूप में भी सिर्फ घरेलू नुस्खों पर ही निर्भरता थी।
हमें पीरियड्स को समझना होगा
-जब तक हम पीरियड्स को एक सामान्य और बायॉलजिकल प्रॉसेस नहीं मानेंगे तब तक अपने समाज से ऐसी रूढ़ियों को दूर करना संभव नहीं है, जिनमें महिलाओं को पीरियड्स के दौरान उपयोग किए जानेवाले कपड़े भी अंधेरे में धोने होते ���ैं। ताकि कोई उन्हें ऐसा करते हुए देख ना ले।
-यहां तक कि महिलाएं इन कपड़ों को सुखाती भी साड़ी और दुपट्टे के नीचे हैं ताकि उन पर किसी की नजर ना पड़े। सोच से जुड़ी से सब सामाजिक दिक्कतें महिलाओं की सेहत को बहुत अधिक नुकसान पहुंचाती हैं।
-कई बार तो उन्हें पता भी नहीं चल पाता है कि उनके कंसीव ना कर पाने यानी मां ना बन पाने का कारण पीरियड्स के दौरान उचित सफाई और हाइजीन का अभाव है। पीरियड्स के दौरान होनेवाला इंफेक्शन कभी-कभी इतना गंभीर हो जाता है कि यूट्रस यानी बच्चेदानी तक फैल जाता है।
हमारे देश में मैंस्ट्रुअल हाइजीन
-पीरियड्स के कारण हमारी सोसायटी में महिलाओं को आज भी कई समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जैसे, अच्छी क्वालिटी के पीरियड पैड्स बहुत महंगे होते हैं, इस कारण हर कोई उन्हें खरीद नहीं पाता। ऐसे में पुराना कपड़ा उपयोग करना मजबूरी बन जाती है।
- जो महिलाएं इन पैड्स को अफॉर्ड कर पाती हैं, वो भी पीरियड्स के दौरान कहीं ट्रेवल करने या बाहर जाने से कतराती हैं। क्योंकि पब्लिक टॉयलट्स का अभी भी बहुत अभाव है। अगर टॉयलट्स हैं भी तो वहां उपयोग किए हुए पैड को डिस्पोज करने की उचित सुविधा नहीं होती।
-ऐसे में अनहाइजीनिक स्थितियां बनती हैं, जो संक्रमण और बीमारियां फैलाती हैं। कई बार आस-पास कोई टॉइलट नहीं होता है तो महिलाओं को एक ही पैड 12 घंटों से अधिक भी उपयोग करना पड़ता है। जो कि इंफेक्शन की वजह बन जाता है।